Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 66
________________ जैन देवियां एवं तत्सम्बन्धी जैन रचनाएं देश देशांतर कांई भमीई ? अड़सठ तीरथ तोय सिर नमीई मनवंछित दाता मतवाली, सेवक सार करो संभाली किस्, कहूं वाली वाली, बांडी वेला तु रखवाली चालक देवी चाचर टाणी, निला नींबानी त धणी आणी तू चमला तू चारण देवी, खोडी आरी बिसहरि समरेणी ।” जगदम्बा छंद अथवा भवानी छंद अभयधर्म के शिष्य वाचक कुशललाभ द्वारा रचित यह देवी भक्ति सम्बन्धी रचना हस्तलिखित ग्रन्थालयों में जगदम्बा छंद एवं भवानी छंद दोनों नामों से उपलब्ध है । संभव है कवि ने मूल रचना के समय ही इसे उक्त दोनों शीर्षकों “जगदम्बा छंद अथवा भवानी छंद” से प्रसिद्ध किया हो । यह भी संभव है कि कालान्तर में किसी प्रतिलिपिकार ने “ जगदंबा" और उसके पर्याय नाम " भवानी” में अर्थभिन्नता न समझकर उक्त नाम दे दिया हो । सामान्य पाठान्तर के अतिरिक्त दोनों ही शीर्षकों की प्रतियों में छंदों की संख्या और पुष्पिका के अतिरिक्त अन्य भेद लक्षित नहीं होते । जगदंबा छंद वाली प्रति 1 में 48 छंद है, जबकि भवानी छंद शीर्षक प्रति में 2 42 छंद । जगदम्बा छंद वाली प्रति की पुष्पिका में एक ही छंद (कळस) में वर्णित है। पर " भवानी छंद" वाली प्रति में यह दो कळस छंदों में लिखी गई है । दोनों ही प्रतियों में कथा समान है। देवी भक्ति सम्बन्धी कवि कुशललाभ की यह लघु भक्ति रचना है । इसमें कवि ने जगदंबा की स्तुति करते हुए उसके माहात्म्य को स्पष्ट किया है । इस विवेचन में कुशललाभ ने देवी के 263 नामों का उल्लेख किया है । प्राप्त दोनों ही प्रतियों में कृति का रचनाकाल नहीं दिया गया है किन्तु जगदम्बा छंद वाली प्रति में उसका लिपिकाल वि.सं. 1734 वर्णित है । कवि की अन्य रचनाओं के आधार पर इसे वि.सं. 1625 से वि.सं. 1645 के मध्य किसी चौमासे में लिखित रचना कहा जा सकता महामाई दुर्गा सातसी कुशललाभ की मातृका विषयक रचनाओं में यह सर्वाधिक वृहत स्तोत्र रचना है 55 1 1. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, उदयपुर हलि. ग्रं. 602 2. (क) एल.डी. इन्स्टीट्यूट आफ इंडोलोजी, अहमदाबाद ह. ग्रं. ला. द. 2493 (ख) श्री अगरचंद नाहटा से प्राप्त प्रतिलिपि

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