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राजस्थानी जैन साहित्य की रूप-परम्परा
अगड़दत्त रास, ढोला मारवणी चौपई, स्थूलिभद्र छत्तीसी, भीमसेन हंसराज चौपई आदि रचनाओं से इनके श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं ।
(11) विवाहलो, विवाह, धवल, मंगल :
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जिस रचना में विवाह का वर्णन हो, उसे विवाहला और इस अवसर पर गाये जाने वाले गीतों को धवल या मंगल कहा जाता है। विवाह - संज्ञक रचनाओं में जिनेश्वर सूरि कृत संयमश्री विवाह वर्णन रास एवं जिनोदय सूरि विवाहला अब तक प्राप्त रचनाओं में प्राचीनतम हैं। तथा धवल - संज्ञक रचनाओं में जिनपति सूरि का धवलगीत प्राचीनतम माना गया है। 2 इन नामों से सम्बन्धित अन्य रचनाएं हैं— नेमिनाथ विवाहलो (जयसागर), आर्द्रकुमार धवल (देपाल) 4, महावीर विवाहलड (कीर्तिरत्न सूरि), शान्तिविवाहलउ (लक्ष्मण), जम्बू अंतरंग रास विवाहलउ (सहजसुंदर), पार्श्वनाथ विवाहलउ (पेथो), शान्तिनाथ विवाहलो धवल प्रबन्ध ( आणन्द प्रमोद), सुपार्श्वजिन-विवाहलो (ब्रह्मविनयदेव) 15 (12) वेलि :
रचना - प्रकार की दृष्टि से वेलि हिन्दी के लता वल्ली (वल्लरी) आदि काव्य रूपों की तरह है । इसमें भी विवाह प्रसंग का ही चित्रण किया जाता है । चारण कवियों द्वारा रचित कृतियों में वि.सं. 1528 के आसपास रचित बाछा कृत चिहुंगति वेलि सबसे प्राचीन कही जाती है । अन्य महत्वपूर्ण जैन-वेलियां हैं— जम्बूवेलि (सीहा), गरभवेलि (लावण्यसमय), गरभवेलि (सहजसुन्दर), नेमि राजुल बारहमासा वेलि (वि.सं. 1615), स्थूलिभद्र मोहन वेलि (जयवंत सूरि) जहत पद वेलि (कनकसोम)7 इत्यादि ।
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सं. भंवरलाल नाहटा — ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
डा. माहेश्वरी – राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ. 244
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. 400
जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृ. 897
जैन सत्यप्रकाश, अंक 10-11, वर्ष 11, क्रमांक 130-31
डा. माहेश्वरी – राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ. 243
जैन धर्म प्रकाश, वर्ष 65, अंक 2 (हीरालाल कावड़िया का लेख )