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राजस्थानी जैन साहित्य
पारिवारिक जीवन
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परिवार समाज की सार्वभौमिक संस्था है, जो नपे-तुले यौन संबंधों पर आधारित है ।1 राजस्थानी समाज में परिवार की ऐसी संस्था सदा से ही महत्वपूर्ण रही है अतः राजस्थानी जैन - रचनाओं में तयुगीन पारिवारिक जीवन की ओर महत्वपूर्ण संदर्भों का मिलना स्वाभाविक है । इन रचनाओं से स्पष्ट होता है कि आलोच्य काल में पुत्र परिवार की सम्पत्ति थी । पुत्र विहीन परिवार बिना दीपक के घर के समान माना जाता था । इसीलिये इन रचनाओं में पुत्र गोद लेने की ओर भी संकेत मिलता है।
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संस्कार
गर्भाधान, पुंसवन, सीमान्तोनयन, विष्णुवलि, चोल, उपनयन, वेदव्रत, चतुष्टय, समावर्तन, केशान्त, विवाह एवं दाह आदि भारतीय समाज के प्रमुख 16 संस्कार है । ये दो दृष्टियों से विशेष महत्वपूर्ण हैं
1. मानव की शुद्धि एवं पवित्रता के लिये तथा
2. मानव की उत्सवप्रियता के लिये ।
राजस्थानी जैन कवियों की कृतियों में गर्भाधान, जन्मोत्सव, नामकरण और विवाह-संस्कारों के प्रमुख रूप से संदर्भ मिलते हैं । इनमें सर्वाधिक संदर्भ विवाह-संबंधी है । इसका मूल कारण विवाह द्वारा गृहस्थाश्रम में प्रवेश कहा जाना चाहिये । विवाह के द्वारा युगल देव कार्यों की सम्पन्नता और संतानोत्पति का अधिकार प्राप्त कर लेता
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राजस्थानी जैन रचनाओं में विवाह की आयु, वरचयन-पद्धति, समाज में प्रचलित विवाह के विभिन्न रूप, बारात एवं तत्सम्बन्धी रीति-रिवाजों के संदर्भ में भी समीचीन जानकारी मिलती है । इन रचनाओं के आधार पर आलोच्य कालीन समाज में विवाह बाल्यावस्था तथा युवावस्था दोनों में संभव थे । लखमसेन पद्मावती कथा 18 वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध में पद्मावती विवाह के अवसर पर 15 वर्ष की थी
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पनर वरस की बाली वेस, सूप अचल अनै उपम वेश ।
आलोच्य काल में रचित जैन रचनाओं में यों तो वरचयन माता-पिता अथवा अन्य बड़ों की राय द्वारा ही किया जाता था, किन्तु कन्या भी अपने वर के चयन में
पी.वी.काने - धर्मशास्त्र का इतिहास, पृ. 424
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