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राजस्थानी जैन साहित्य
राजस्थानी जैन प्रेमाख्यानक लोक प्रचलित कथाओं, पौराणिक एवं निजन्धरी घटनाओं पर आधारित है। अतः तत्सम्बन्धी कथानक रुढ़ियों (अभिप्रायों) का इन कवियों द्वारा प्रयोग करना स्वाभाविक ही है। इनके प्रयोग से कथा के घटना व्यापार को त्वरा मिली है । सरसता और रोचकता बढ़ी है तथा कथानक को संकेतों के माध्यम से संक्षिप्तता भी प्राप्त हुई है। राजस्थानी जैन कवियों की प्रेमाख्यानक रचनाओं में प्राप्त प्रमुख कथानक रुढ़ियां हैं-नायक का अति प्राकृतिक रूप में जन्म, मृत व्यक्ति का मंत्रादि शक्तियों द्वारा पुनर्जीवित होना, आकाश गमन, दिशा एवं स्थल वर्जन, भविष्य सूचक स्वप्न, रूप परिवर्तन द्वारा लड़ाई, कुलटा स्त्री का पति अथवा प्रेमी को धोखा देना, वन में नायक का मार्ग भूलना, सौतिया डाह, नायिका को अकेली पाकर उसका अपहरण, प्रेम-परीक्षा, नायिका की चिता के साथ नायक का जल मरने का निर्णय, जादू की डोरी, शुक रुढ़ि, दोहद कामना, नायिका द्वारा नायक का अवरोध, दो भाइयों का कथातंतु, इंद्र महोत्सव की रुढ़ि, मार्ग में नायक अथवा पात्र को सरोवर, महल, योगी का मिलना और उनका श्रावक बनना, सत की परीक्षा इत्यादि।
तेजसार रास (कुशललाभ) में वर्णित हैं कि उसका जन्म दीपदान प्रज्वलन के फलस्वरूप हुआ।' इसी भांति का अतिप्राकृतिक जन्म भीमसेन हंसराज चौपई (कुशललाभ) में हंसराज का होता है । अगड़दत्तरास और भीमसेन हंसराज चौपई4 (कुशललाभ) में विद्याधर और तापस मदनमंजरी को अपने मंत्रादि द्वारा जीवित करते हैं। इस रुढ़ि का मुख्य ध्येय कथा को सुखान्त बनाना है। थामसन की तालिका में यह रुढ़ि E वर्ग में पुनर्जीवन शीर्षक के अन्तर्गत EO-E 199 प्रविष्टि संख्या पर अंकित है।
अदिशा अथवा स्थल वर्जन सम्बन्धी कथानक रुढ़ि का बच्छराज चौपई (विनयलाभ), उत्तम कुमार (विनयचंद्र), जिनपालित जिनरक्षित संधि (कुशललाभ) आदि रचनाओं में उल्लेख हुआ है ।प्रथम रचना में नायक बच्छराज वर्जित स्थल यक्षवन में जाकर संकटों में फंस जाता है। उसी वन में सरोवर में स्नान करती विधाधरी की कंचुकी चुराता है । द्वितीय रचना में उत्तम कुमार वर्जित बावड़ी में जाकर वहां राक्षस
1. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, हं ग्रं.26546, चौ. 149-51 2. एलड़ी इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद, ला.द.ग्रं.1217, छंद 253-261 3. भण्डारकर प्राच्य विद्या मंदिर, पूना, ह.नं. 605; चौ. 258 4. एलड़ी. इन्स्टीट्युट, अहमदाबाद, ला.द.ग्रं.1217, चौ.230