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मध्यकालीन राजस्थानी जैन रचनाओं में...... संदर्भ (वि.सं. 1600 - वि.सं. 1900)
सज्झाय” में तम्बाकू के अवगुणों का चित्रण हुआ है। जुआ का खेल भी प्रचलित था। इस खेल में कई बार हार जाने पर मस्तक भी काट लिया जाता था, अतः इस पर भी रोक रखी जाती थी
मात पिता मन रंग, कुमर न वरज्यु तिहां कीयइ । सदा फिरइ ते सांती, जुआरया मोहे जुड्यअ ||1
शिक्षा
सदयवत्स सावलिंगा चौपई (केशव) उत्तमकुमार चौपई, पुण्यसार तेजसार रास, अगड़दत्त रास, स्थूलभद्र छतीसी आदि रचनाओं से तत्कालीन समाज में शिक्षा के स्वरूप का परिचय भी मिलता है । विद्याविलासरास, अगड़दत्त रास रचनाओं में गुरुकुलों में सहशिक्षा का उल्लेख हुआ है। बड़ी आयु के छात्र-छात्रा भी अपनी प्रतिभा दिखाकर गुरुकुलों अथवा पोशालों (जैन पाठशालाओं) में प्रवेश पा सकते थे, अन्यथा पोशालों में प्रवेश की आयु 8 वर्ष तक ही थी—
आठ वरस नु अनुक्रमउरे, पुत्र हुओ परिधान । माता-पिता मन रंग सु, मुक्यउ पछिना बहु मान रे ॥2
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यहाँ छात्र-छात्राओं के पाठ्य विषयों की चर्चा भी हुई है। प्राथमिक अध्ययन के उपरान्त अध्ययन के मुख्य विषय राजनीति, व्याकरण, अमरकोश, पिंगल, लीलावती गणित, आयुर्वेद, ज्योतिष, रसायन आदि थे—
गुटी, पुटी, जटी, तंत, जंत मंत, अंत, पत इलवसी कार एक घुटे धड़घात है | 3
छात्राओं को ललित कलाएँ विशेष रूप से पढ़ाई जाती थी ।
धर्म- विचार -
जैसा कि कहा जा चुका है जैन कवियों का मुख्य लक्ष्य अपने धर्म का प्रचार करना था । किन्तु इनके नायक क्षत्रिय थे, अतः उन प्रसंगों में पौराणिक धार्मिक विश्वासो का भी चित्रण हो गया है। इन वर्णनों से स्पष्ट होता है कि तत्कालीन समाज में
1. समयसुन्दर – पुण्यसार चौपई, पृ. 120
2. पुण्यसार चौ. समयसुन्दर, पृ. 125
3. विद्याविलास चौपाई