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राजस्थानी जैन साहित्य
स्थूलिभद्र मगध देश की राजधानी पाटलीपत्र (पाटन) के राजा नंद के मंत्री शकटार का पुत्र था। पाटन की राज गणिका कोशा से उसका प्रेम हो गया। वह उसके साथ बारह वर्षों तक रहा। इसी बीच राजा नंद की मृत्यु हो गई। मंत्री ने उसे राजपाट हेतु बुलाया किन्तु पश्चातापवश उसने राज-काज नहीं संभाला । वह चातुर्मास करने पुनः कोशा की रंगशाला में ही गया । कोशा ने उसके संयमव्रत को तोड़ने के अनेक प्रयत्न किये, किन्तु विफल रही। अन्त में कोशा ने भी अपने प्रियतम का अनुसरण कर वैराग्य धारण किया। ___ कवि ने अनेक उद्दीपनों के माध्यम से प्रेम प्रसंगों की अवतारणा की है। स्थूलिभद्र को ललचाने हेतु वह सोलह शृंगारों से परिपूर्ण होकर उसके समक्ष प्रस्तुत होती है। किन्तु स्थूलिभद्र के संयम तप के समक्ष कोशा के सभी प्रयत्न विफल हो जाते हैं। महा बलवान कामदेव रतियुद्ध के प्रांगण में विजित हो जाता है और कवि अपने लक्ष्य की पूर्ति करता है
अई बलवंत सुमोहराउ, जिणि नाणि निधाडिउ।
झाण खडग्गिण मयण-सुभउ समरंगणि पाडिउ । स्थलिभद्र-सम्बन्धी यह आख्यान जैन आचार संहिता में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है । इस आख्यान को लेकर मध्यकाल में छोटी-बड़ी अनेक रचनाएं लिखी गई, जिनका उल्लेख हमने इसी संग्रह के एक अन्य लेख में किया है। स्थूलिभद्र सम्बन्धी कतिपय रचनाओं का प्रकाशन राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान ने भी किया है। कुशल लाभ कृत स्थूलिभद्र छत्तीसी का संपादन हमने सप्तसिंधु में प्रकाशित करवा दिया है। 2. नेमिनाथ फागु__. प्राकृतकाल से ही जैन धर्म के 22 वें तीर्थकर नेमिनाथ और राजुल का प्रेमाख्यान प्रचलित रहा है। यहां भी कवि मलधारी राजशेखर सूरि ने इसी प्रसंग को लेकर इसकी रचना वि.सं. 1405 में की । ऐसी मान्यता है कि यदुवंशी नेमिनाथ कृष्ण के
1. मयण खग्ग जिम लहलहंत जसु वेणी दंडो।
सरलउ तरलउ सामलउ रोमावलि दंडो। तुंग पयोहरे उल्लसई, सिंगार थपक्का । कुसुम बाणि अमिय कुंभ, फिरि थापिणि मुक्का ।12
-गुजराती साहित्य नो स्वरूपो, पृ. 216-17