Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 43
________________ 32 राजस्थानी जैन साहित्य यहां विविध कथाओं को ले कवियों ने स्वतंत्र प्रेमाख्यान भी रचे, यथा—महाकवि भास कृत स्वप्नवासवदत्ता, सुबंधु कृत वासवदत्ता, बाण रचित कादम्बरी, कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्, मेघदूत, विक्रमोर्वशीय, कुमारसंभव, मालविकाग्निमित्रम्, भवभूति कृत मालतीमाधव, हर्ष रचित रत्नावली नाटिका, नैषधीयम महाकाव्य, त्रिविक्रम कृत नलचम्पू इत्यादि। संस्कृत साहित्य में वर्णित अवान्तर आख्यानों एवं संस्कृत कवियों के प्रभाव से यह परम्परा पालि, प्राकृत-अपभ्रंश साहित्य में भी विकसित हुई। पालि भाषा में रचित बौद्ध जातकों में प्रेम कथाओं का अन्यतम रूप प्राप्त होते है । कट्ठहारिक जातक के मूलकथा तन्तु महाभारत के शकुन्तलोपाख्यान से समता रखते हैं। इसी भांति अंडभूत जातक2, असिलक्खण जातक, मदुपाणीजातक', आसंगजातक, दस एणक जातक, सुसंग्गाजातक', महापद्मजातक, भी पालिभाषा की उल्लेखनीय प्रेमाख्यानक रचनाएं कही जानी चाहिये। गुणाढ्य की वृहत्कथा, क्षेमेन्द्र की वृहत्कथामंजरी, सोमदेव रचित कथा सरित्सागर, जैन कवि हरिषेणकृत वृहत्कथा कोष आदि रचनाएं प्रेमाख्यानक रचनाओं के अक्षुण्ण भण्डार हैं। इन्हीं प्रेमाख्यानों में प्रयुक्त कथा-तन्तुओं, यथा-प्रेमी का फूलों की टोकरी में छिपाकर प्रेमिका के महलों में जाना, चौपड़ खेलना, नायिका के विवाह के लिए शर्त रखना, स्त्री की कामासक्ति, दक्षिण दिशा की ओर न जाना, मधुकूप आदि की घटनाओं से राजस्थानी जैन प्रेमाख्यान विकसित हुए हैं। ___ जैन कवियों ने प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में भी अनेक प्रेमाख्यानकों की सर्जना इनमें शील माहात्मय की स्थापना हेतु नायक-नायिका के एकनिष्ठ प्रेम का निरूपण किया गया है। प्राकृत में हरिभद्र की समराइच्च कहा, उद्योतनसूरि कृत 1. जातक कथा (प्रथम खण्ड) हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, पृ. 173-76 2. वही, पृ. 376 3. वही (दूसरा खण्ड)—वही, पृ.64 4. वही (तृतीय खण्ड)वही, पृ49 5. वही, पृ.47 6. वही (चतुर्थ खण्ड) वही, पृ. 187 7. वही, पृ. 187 8. वही, पृ. 387

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