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मध्यकालीन राजस्थानी जैन रचनाओं में सामाजिक
इतिहास संदर्भ (वि.सं. 1600 - वि.सं. 1900)
साहित्य में वि.सं. 1600 से वि.सं. 1900 तक का काल मध्य काल नाम से जाना जाता है। इस युग में साहित्य से सम्बन्धित अनेक आंदोलन हए। उनसे सम्बन्धित एवं राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित अनेक साहित्यिक धाराओं का विकास हुआ।
राजस्थान मध्यकालीन इतिहास का प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। यहां-वैष्णव, सूफी, जैन, धर्मों (सम्प्रदायों) का विकास हुआ। राजा-महाराजाओं की सहिष्णुता के कारण उन्हें राजनीतिक प्रश्रय भी मिला। परिणामतः इन सम्प्रदायों से सम्बन्धित अनेक कवियों ने साम्प्रदायिक रचनाओं का निर्माण किया। इनमें जैन लेखक अग्रणीय रहे।
_ वि.सं. 1600-1900 के बीच शताधिक ऐसी रचनाएं इन जैन कवियों ने लिखी. जिनका न केवल राजस्थानी साहित्य में महत्व रहा, अपितु इतिहास और हिन्दी साहित्य में भी उनका यथावत महत्व है । कुशललाभ, हीरकलश, समयसुन्दर, हेमरत्न, जटमल, लब्धोदय, मोहनविजय, विनय-लाभ दामोदर, लाभवर्धन, विनयप्रभ, भतिकुशल, राजविजय, कल्याण कलश, रामचंद, रिखसाधु, वीरविजय, उत्तमविजय, हुलासचंद आदि इनमें से उल्लेखनीय नाम हैं। इन कवियों का मूल लक्ष्य तो श्रृंगार-चित्रणों के साथ जैन धर्म के अनुकूल वैराग्य भावना का प्रचार करना रहा है, पर उनमें अनेक स्थलों पर प्रसंगवश तत्कालीन समाज का भी सुन्दर चित्रण हो गया है । ये वर्णन ही तयुगीन समाज को जानने के लिये संदर्भ स्त्रोत है, जो इस शोध पत्र का विषय है ।
यहाँ सामाजिक संदर्भ से तात्पर्य है कवि की रचनाओं में चित्रित समाज एवं