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राजस्थानी जैन साहित्य
(21) पट्टावली - गुर्वावली :
इनमें जैन लेखकों ने अपनी पट्टावली परम्परा और गुरू- परम्परा का ऐतिहासिक दृष्टि से वर्णन किया है। ये गद्य-पद्य दोनों रूपों में लिखी गई हैं। तपागच्छ और खरतरगच्छ आदि की पट्टावलियां तो प्रसिद्ध हैं ही, पर प्रायः प्रत्येक गच्छ और शाखा की अपनी पट्टावलियां भी लिखी गई हैं ।
( 22 ) विज्ञप्ति पत्र, विहार पत्र, नियम- पत्र, समाचारी :
इन पत्रों के अन्तर्गत जैनाचार्यों के भ्रमण, उनके नियम एवं श्रावकों को चातुर्मास, निवास इत्यादि की सूचनाओं का वर्णन किया जाता है । विज्ञप्ति पत्रों मार्ग में आने वाले नगरों, ग्रामों का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया जाता है। पत्र लेखन शैली की दृष्टि से भी इनका महत्व है ।
(23) सीख :
सीख का अर्थ है शिक्षा । जैन लेखकों ने धार्मिक शिक्षा के प्रचार की दृष्टि से जिन गद्य-रचनाओं का निर्माण किया, वे सीख ग्रंथ है I
इस प्रकार राजस्थानी का जैन साहित्य विविध विधाओं में लिखा हुआ है । कथाकाव्यों, चरितकाव्यों के रूप में इन कवियों और लेखकों ने जहां धार्मिक स्तुतिपरक रचनाओं का निर्माण किया वहीं गद्य रूप में वैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक ग्रन्थों का भी प्रणयन किया । इस साहित्य में चाहे साहित्यिकता का अभाव रहा हो पर भाषा के अध्ययन एवं साहित्यिक रूपों के विकास की दृष्टि से वह महत्वपूर्ण है। जैन साहित्य की आत्मा धार्मिक होने से उसका अंगी रस शान्त है । यों कथा - चरित काव्यों का आरंभ शृंगार रस से ही हुआ है। विक्रम सम्बन्धी रचनाओं एवं गोरा-बादल सम्बन्धी जैन रचनाओं में वीर रस की भी प्रधानता है । प्रत्येक कृति का आरंभ मंगलाचरण, गुरु, सिद्ध, ऋषि की वंदना से हुआ है तथा अन्त नायक के संन्यास एवं उसकी सुचारू गृहस्थी के चित्रण द्वारा । चरित-काव्यों एवं मुक्तक रचनाओं के अन्दर लौकिक दृष्टान्तों का स्पर्श है | राजस्थानी जैन गद्य का हिन्दी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, किन्तु ऐसे महत्वपूर्ण साहित्य का संकलन अभी तक अपूर्ण है ।