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राजस्थानी जैन साहित्य
दशसमाधिस्थान कुलक, वंदन दोष 32 कुलक, गीतार्थ पदावबोध कुलक (पार्श्वचन्द्र सूरि)', दिनमान कुलक (हीरकलश)।2 (17) हीयाली :
कूट या पहेली को हीयाली कहते हैं । हीयालियों का प्रचार सोलहवीं शताब्दी से हुआ । इस काव्यशैली की प्रमुख कृतियां हैं-हरियाली (देपाल), गुरु-चेला-संवाद (पिंगल शिरोमणि कुशललाभ कृत के अंश)', अष्टलक्ष्मी (समयसुन्दर) इत्यादि । (18) विविध मुक्तक रचनाएं :
जैन कवियों ने जैन धर्म से हटकर अन्य विषयों पर भी गीत, छंद, छप्पय, गजलें, पद, लावणियां, भास, शतक, छत्तीसी आदि नामों से भी रचनाएं की हैं। इनके विषय इतिहास, उत्सव, विनोद आदि हैं। इनके अतिरिक्त जैन-मुनियों ने शास्त्रीय विषयों को भी अपने साहित्य का आधार बनाया। इस दृष्टि से व्याकरण, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, गणित, ज्योतिष प्रभृति अनेक शास्त्रीय ग्रन्थ एवं उन पर टीकाएं उपलब्ध हैं। संख्याधारी रचनाओं में छन्दों की प्रमुखता होती है। कहीं-कहीं उनमें निहित कथाओं अथवा उपदेशों को भी ये संख्या द्योतित करते हैं। जैसे-वेताल पच्चीसी (ज्ञानचंद्र) सिंहासन बत्तीसी (मलयचंद), विल्हण पंचाशिका (ज्ञानाचार्य) । संख्या नामधारी काव्य-रचनाओं में इन्होंने अधिकांशतः धार्मिक स्तुतियां ही लिखी है। महत्वपूर्ण शास्त्रीय ग्रन्थ निम्नाकिंत हैं--- (क) व्याकरण शास्त्र—बाल-शिक्षा, उक्ति रत्नाकार, उक्तिसमुच्चय, हेमव्याकरण,
1. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1, पृ. 139, भाग 3, पृ. 586 2. शोध पत्रिका, भाग 7, अंक 4, सं. 2021 (राजस्थान के एक बड़े कवि हीरकलश) 3. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1,3 4. परम्परा, भाग 13, राजस्थान भारती, भाग 2, अंक 1, 1948 ई. __ आनन्द काव्य महोदधि, मौक्तिक 7
जैन गुर्जर कविओ, भाग 1, पृ.545 7. वही, पृ.474 8. वही, पृ.636 9. पूज्यप्रवर्तक श्री अंबालालजी महाराज अभिनंदन ग्रंथ (राजस्थानी जैन साहित्य” नामक
लेख) प.460