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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ० १
२२. जीवियंतकरणो - जीवन का अन्त-विनाश करने वाला। २३. भयंकरो - भयंकर, प्राण-वध सभी जीवों के लिए भयप्रद है।
२४. अणकरो - ऋणकर, पापकर्म आत्मा पर बड़ा भारी कर्ज है, जो अनेक भवों से भी नहीं उतर सकता।
२५. वज्जो - वर्ण्य-दूर रहने योग्य, आत्महितैषी एवं प्रशस्त आत्मा के लिए दूर रखने योग्य अथवा व समान भारी, डुबाने वाला।
२६. परियावण अण्हओ - परितापन आस्रव, प्राणियों को परितापना देने-क्लेशित करने रूप आत्रव।
२७. विणासो - विनाश, जीवन को विनष्ट करने वाला। २८.णिज्जवणा - निर्यापना, शरीर से प्राणों को निकालने वाला। २९. लुपणा - जीवों के प्राणों का लोप करने रूप। ३०. गुणाणं विराहणत्ति - गुणों की विराधना, उत्तम गुणों का नाश करने वाला।
एवमाइणि - इस प्रकार - अथवा इत्यादि तस्स - उस, कलुसस्स - पापजनक, पाणवहस्स - . प्राण वध के, कडुयफलदेसगाई - कटु फल बतलाने वाले, तीसं - तीस, नामधेज्जाणि - नाम, होति - होते हैं।
विवेचन - प्राण-वध-हिंसा के ये नाम, इसके दुष्परिणाम को सूचित करते हैं। हिंसा, हिंसक को इस भव, पर-भव और भवोभव में दुःखी करने वाली है। उपरोक्त तीस नामों में सूत्रकार ने प्राण-वध : की विभिन्न पर्यायों को स्पष्ट किया है।
___ पापियों का पापकर्म तं च पुण करेंति केइ पावा असंजया अविरया अणिहुयपरिणामदुप्पयोगा पाणवहं भयंकरं बहुविहं बहुप्पगारं परदुक्खुप्पायणपसत्ता इमेहिं तसथावरेहि जीवेहिं पडिणिविट्ठा।
शब्दार्थ - केइ पावा - कई पापी जीव, इमेहिं - इन, तसथावरेहिं - त्रस और स्थावर, जीवेहिं - जीवों पर, पडिणिविट्ठा - द्वेष करते हैं, परदुक्खुप्पायणपसत्ता - दूसरे जीवों को दुःख उत्पन्न करने में प्रवृत्त रहते हैं, अणिहुयपरिणामदुप्पयोगी - जिनका परिणाम-भाव अशान्त है और जिनके मन, वचन और काया के योग दुष्ट व्यापार वाले हैं, अविरया - जो विरति से रहित-अविरत हैं, असंजया - जो असंयमी हैं, बहुविहं - वे बहुविध-विविध रीति से, बहुप्पगारं - अनेक प्रकार से, तं - उस, पाणवहंप्राण-वध को, करेंति - करते हैं।
भावार्थ - कितने ही पापी जीव, त्रस और स्थावर जीवों पर द्वेष रखते हुए उन्हें दुःखी करने में
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