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प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० १
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१४. अणजओ अन्यायरूप अथवा अनार्यों के योग्य ।
१५. उव्वेयणओ - उद्वेग कारक । हृदय को अशान्त करने वाला ।
१६. णिरयवक्खो - निरपेक्ष। दूसरे जीवों के सुख एवं जीवन की अपेक्षा रहित ।
१७. णिद्धम्मो धर्म से रहित - अधर्म ।
१८. णिप्पिवासो - निष्पिपासा । प्राणियों के प्रति पिपासा - मैत्री अथवा प्रेम भाव से रहित । -
१९. णिक्कलुणो - निष्करुण । दयारूप कोमल भाव से रहित ।
२०. णिरयवासणिधण गमणो नरक में ले जाकर चिरकाल तक वास कराने वाला।
२१. मोहमहब्भयपयट्टओ मोह एवं महान् भय का प्रवर्तक । प्राणातिपात के पाप से पापी की आत्मा, महामोह से आच्छादित होकर अज्ञान और भय की उत्कृष्ट स्थिति को प्राप्त कराने वाली।
२२. मरणवेमणस्सो - मृत्यु और वैमनस्य का कारण । प्राणी-वध से वैमनस्य - शत्रुता होकर • मृत्यु का निमित्त उपस्थित होता है।
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यह प्रथम अधर्म द्वार हुआ। .
विवेचन - उपरोक्त २२ प्रकार से सूत्रकार ने प्राण-वध (हिंसा) का स्वरूप बतलाया है। · प्राणातिपात का पाप करने वाले पापी जीव की आत्मा कितनी हीन एवं अधम दशा में पहुंच जाती है, इसका सूत्र में स्पष्ट उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट है कि प्राण-वध करने वाली आत्माएं अपनी क्रूर वृत्ति के कारण अपनी आत्मा को अप्रशस्त, कलुषित एवं पाप के भार से बोझिल बनाकर और पाप का भयानक भार लादकर नरक गति की ओर चली जाती है और चिरकाल तक दुःख-परम्परा भुगतती रहती है। यदि स्थावरकाय या निगोंद में गये, तो वहाँ की जन्म-मरण परम्परा का तो कहना ही क्या ?
प्राण-वध के नाम
तस्स य णामाणि इमाणि गोण्णाणि होंति तीसं, तं जहा १. पाणवहं २. उम्मूलणा सरीराओ ३. अवीसंभो ४. हिंसविहिंसा तहा ५. अकिच्चं च ६. घायणा य ७. मारणा प ८. वहणा ९. उद्दवणा १०. णिवायणा व ११. आरंभसमारंभी १२. आठपक्कम्मस्सुबहवो भेषणिडुबणगालणा व संवगसंखेबो १३. मच्चू १४. असज़मो १५. कडगमद्दणं १६. वोरमणं १७. परभवसंकाप्रकारओ १८. दुग्इप्पवाओ १९. पावकोवो य २०. पावलोभो २१. छविच्छेओ २२. जीवियंतकरणो २३. भयंकरो २४. अणकरो २५. वज्जो २६. परियांवण अण्हओ २७. विणासो २८. णिज्जवणा २९. लुंपणा ३०. गुणाणं विराहणत्ति विय तस्स एवमाईणि णामधिज्जाणि होंति तीसं । पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफल- देसगाई ॥ २ ॥
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