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प्राण-वध का स्वरूप
भावार्थ - प्राणीवध के जो नाम हैं, जैसा स्वरूप है और पापियों द्वारा जिस प्रकार, प्राणातिपात किया जाता है तथा हिंसा का जो फल होता है, उसे सुनो।
विवेचन - इस गाथा में आगे कहे जाने वाले प्राणी-वध नामक प्रथम अध्ययन का विषय बताया गया है। अब प्राण-वध के नाम आदि का वर्णन किया जा रहा है।
प्राण-वध का स्वरूप पाणवहो णाम एसो जिणेहिं भणिओ - १. पावो २. चंडो ३. रुद्दो ४. खद्दो ५. साहसिओ ६. अणारिओ ७. णिग्घिणो ८. णिस्संसो ९. महब्भओ १०. पइभओ ११. अइभओ १२. बीहणओ १३. तासणओ १४. अणजओ १५. उव्वेयणओ य १६. णिरवयक्खो १७. णिद्धम्मो १८. णिप्पिवासो १९. णिक्कलुणो २०.णिरयवासणिधणगमओ २१. मोहमहब्भयपयट्टओ २२. मरणवेमणस्सो।
एस पढमं अहम्मदारं॥१॥
शब्दार्थ - एसो - यह, पाणवहो - प्राणी-वध, णाम - नाम, जिणेहिं भणिओ - जिनेश्वर ने कहा है। आगे प्रत्येक नाम के साथ ही उसका अर्थ और स्वरूप बताया जाता है।
१. पावो - पाप। जिसके आचरण से आत्मा ८२ प्रकार की पाप-प्रकृतियों का बन्ध करती है।
२. चंडों - चण्ड। क्रोध के कारण हिंसक में सौम्यता नष्ट होकर प्रचण्डता आ जाती है। इससे प्राण-वध को 'चंड' कहा है।
३. रुद्दो- रौद्र । अपनी क्रोधी परिणति के कारण हिंसक का रौद्र रूप बन जाता है। ४. खुद्दो- क्षुद्रता। अधमता। हिंसा नीचजनों के योग्य है।
५. साहसिओ - साहसिक। हिताहित और योग्या-योग्य का विचार नहीं करके सहसा पाप करना।
६.अणारिओ - अनार्य। आर्यों - उत्तमजनों से त्याज्य और अनार्यों, म्लेच्छों द्वारा आचरित। ७. णिग्घिणो - घृणा रहित। जिसके हृदय में से हिंसा के प्रति रही हुई घृणा निकल गई हो। ८.णिस्संसो - नृशंस। क्रूरता युक्त। ९. महब्धओ - महाभय रूप। जीवों के लिए भयानक। १०. पइभओ - प्रतिभय। प्रत्येक प्राणी के लिए भयप्रद। ११. अइभओ - अतिभय। मृत्यु-भय जैसा अत्यन्त भयानक। १२. बीहणओ - भयोत्पादक। जीवों के मन में भय उत्पन्न करने वाला। १३. तासणओ - त्रासदायक। अकस्मात् क्षोभ उत्पन्न करने वाला।
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