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त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
उदा.-वंकं वक्रम् । कुंमलं कुड्मलम् । बुंधणं बुध्नम् । पुंछं पुच्छम् । मुंढा मूर्धा । गुंछ गुच्छम् । कंकोडो कर्कोटः । गिठी गृष्टिः । ईसणं दर्शनम् । 'फसो स्पर्शः । अंसू अश्रु । मंसू इमथु। तंसं त्र्यम् । मंजारो मार्जारः । विछिओ वृश्चिकः । इन शब्दोंमें पहले स्वरके आगे अनुस्वार आया है। मणं सिणी मनस्विनी। मणसिला मनःशिला। वअंसो वयस्यः। पंसत्थं पार्श्वस्थम् । पडिंसुआ प्रतिश्रुत् । इन शब्दोंमें दूसरे स्वरके आगे अनुस्वार आया है । उआर उपरि । अणिउतअं अतिमुक्तकम् । इन शब्दोंमें तीसरे स्वरके बाद अनुस्वार आया है। कचित् वृत्त-पूरण के लिए भी अनुस्वार आता है। उदा.-देवंणाअसुवत्तं देवनागसुवक्त्रम् । और कचित् गिठी, मज्जारो, मणसिला, मणोसिला, ऐसेभी रूप दिखाई देते हैं ।। ४२ ॥
‘क्त्वासुपोस्तु सुणात् ।। ४३ ॥ _क्त्वा-प्रत्यय और सुप (प्रत्यय) इनसे संबंधित रहनेवाले जो सुकार और णकार, उनके आगे बिंदु (अनुस्वार) विकल्पसे आता है । उदा.सुकारके आगे अनुस्वार-वच्छेसु वच्छेसु । अम्हेसु अम्हेसु । तुम्हेसुं तुम्हेसु । क्त्वा प्रत्ययके णकारके आगे अनुस्वार-काऊणं काऊण । काउआणं काउआण । सुप से संबंधित रहनेवाले णकारके आगे अनुस्वार-वच्छेणं वच्छेण । वच्छाणं वच्छाण । ममाणं ममाण । तुम्हाणं तुम्हाण। अम्हाणं अम्हाण । सुकार और णकार इनके आगे, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण सुकार और णकार न होते तो विकल्पसे अनुस्वार नहीं आता ।उदा.)करिअ । अग्गिणो ॥ ४३ ॥ लुङ् मांसादौ॥४४॥
(इस सूत्रमें ) वा शब्द (अध्याहृत) है। बिन्दु (१.१.४०) पदका अधिकार हैही। (उस बिन्दु शब्दमें) बिन्दुका (बिन्दोः) ऐसा षष्ठयन्त परिणाम होता है (यानी यहाँ बिंदुका ऐसा षष्ठयन्त रूप लेना
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