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प्रथम भाग।
गई और उनसे संतान उत्पन्न हुई । आई हुई आर्य जातियोंक सम्बन्धमें वर्तमान इतिहासकारोंके सिद्धांत इस भांति हैं:
(१) प्राचीन कालमें इस जाति और कुलके मनुष्य मध्य एशियाके पश्चिम भागमें अर्थात् तुर्किस्तानमें और यूरोपके पूर्वसमतल भूमिमें रहते थे। ये लये, गैरे और सुन्दर थे।
(२) ये लोग गावों और बस्तियामे रहते तथा पशुओंको'जैसे भेड़, गाय, बैल आदिको पालते थे और खेती करते, सुत कातते. कपड़े बनाते, रांगा व तम्बा गलाकर अस्त्र शस्त्र बनाया करते थे। ।
(३) इन लोगोंकी मनुष्य संख्या बढ़ते बढ़ते इतनी अधिक हो गई कि उक्त स्थानों में ये लोग समा न सके तथा वहांकी भूमिकी उपजाऊ शक्ति भी घट गई अतः ये लोग अपने देशसे निकल पड़े। इन निकले हुए लोगोंमसे कितनी ही जातिया पश्चिमकी ओर और कितनी ही जातिया वहाँके पूर्व निवासियोंमें हिलमिल गई । इन पश्चिमकी मिलीजुली जातियोंकी ही संतान अग्रेज, प्रंस, जर्मन, व युरोपके अन्य लोग हैं । दक्षिणको आई हुई नातियांमसे कुछ जातियां हिन्दुस्थानमें आगई । और ये ही मारतवर्षकी आर्यनातिया कहलाई।
(४) जो लोग यहॉपर आये थे वे पढ़े लिखे न थे परन्तु अपने अपने देवताकि मजन गाया करते थे। पढ़ लिखे न होने से ये अपना कुछ हाल नहीं लिख गये है । परन्तु जो वे भजन गाया करते थे उनसे आर्यजातियोंकी बहुत कुछ स्थिति मालूम होती है। इन भजनों के संग्रह ही वेद है।