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प्रथम भाग। . ३० सुदरीदेवी आई । इनकी इस समय प्रारंभ युवावस्था थी। दोनों को भगवान्ने गोदीमें बिठाया और उन्हें पढ़ने के लिये मौखिक उपदेश टेकर विद्य का महत्व बताते हुए अ, आ, इ, ई आदि स्वरोंसे अक्षरोंका ज्ञान प्रारंभ कराया और इकाई दहाई आदि गिन्ती भी पढाना प्रारंभ किया। भगवान् ऋषभदेवक चरित्रमें अपने पुत्रोंको पढ़ानेका वर्णन कन्याओंके पहानेके बाद आया है। इससे मालूम होता है कि भगवानने स्त्री-शिक्षाका महत्व जगतमें प्रगट करनेको ही ऐसा किया होगा अपने इस आदर्श कार्यमें भगवान्ने यह गूढ़ रहस्य रखा और प्रगट किया है कि पुरुप-शिक्षाका मूल कारण स्त्रीशिक्षा हो है। इन कन्याओंको भगवान्ने व्याकरण, छंद, न्याय, काव्य, गणित, अहंकार आदि अनेक विषयों की शिक्षा दी थी।
(१५) दोनो कन्याओं के लिये भगवान्ने एक " स्वायभुव" नामक व्याकरण बनाया था और छंदःशास्त्र, अलंकारशास्त्र आदिशास्त्र भी बनाये थे।
(१६) पुत्रियोंको पढ़ाने बाद मरत आदि एकसो एक पुत्रोंतो भी भगवान्ने पढ़ाया। भगवान्ने यद्यपि अपने सब पुत्रोंही अनेक विद्याओंकी शिक्षा दी थी तो भी नीचे लिखे पुत्र निम्न लिखिन खास खास विषयोंके विद्वान् बनाये थे । (क) भरतको नीतिशास्त्रका (इन्हें नृत्यशास्त्र भी पढ़ाया था.) (ख) वृण्मसेन (द्वितीय पुत्रको ) संगीत और वादन शारदका (ग) अन्तविजयको चित्रकारी, नाटयकला और मकानोंके बनानेकी विद्या ( engineering) सिखाई थी।