Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ ३१ प्राचीन जैन इतिहास (घ) बाहुबलीको कामशास्त्र, वैद्यकशास्त्र. धनुर्वेदविद्या, 'पशुओंके लक्षणों को जाननेका ज्ञान और दन्नपरीक्षाका ज्ञान कराया था। (१७. भगवान्ने जगत्में प्रचार होने योग्य सम्पूर्ण बिद्यायें अपने पुत्रोंको सिाई थीं। (८) नाभिरायके समयमें जो धान्य व फल स्वयं-प्रारुतिक-उत्पन्न हुए थे, उनमें भी रस आदि कम होने लगा और वे क्षीण ह ने लगे, तब सब प्रमा महाराना नाभिके पास आई *और अपने दु खोंको ( धान्य वृझेके न रहनेसे क्षुबा आदिके दुःख ) कहने लगी तब महारानने भगवान् ऋषभके पास उस प्रजाको भेना । परोपकारी भगवान् ऋषभने आर्यखंडकी प्रजाके कप्टोको दूर करने और उनके व्यवहारके उपायोंके साधन बनानेकी इ द्रको आज्ञा दी और उसको सब रीति बताई। तब इन्द्रने इस भांति किया। (1) जिनमंदिरोंकी रचना की। (२) देश, उपप्रदेश, नगर आदिकी रचना की। (३) सुकोशल, अवती, पुंडू उड् अस्नक, रम्यक, कुरु, काशी, कलिंग, अग, वंग, सुहम, समुद्रक, काश्मीर, उशीनर, आनत, वत्स, पंचाल, मालव, दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ कुरुजांगल, करहाट, महाराष्ट्र, मुराष्ट्र, आभीर, कोंकण, वनवास, आंध्य, कर्णाट, कौशल, चोल, केरल, दाप्त, अभिसार, सौवीर, सूरसेन, नपरांत, विदेह, सिंधु, गांधार, पवन, चेदि, पल्लव, . झांबोन, आरट्ट, वाहीक, तुरुक, शक और केकय इन बावन

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143