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प्रथम भाग।
वर्ष नव शेष रह गये तब चंपापुरमें पधारकर वहींपर समयशरण समामें आपकी दिव्यध्वनि द्वारा उपदेशादि हुए । एक मास मायुमें बाकी रह जानेपर दिव्यध्वनिका होना बंद हुअर तब मंदारगिरिक वनमें शेष कर्मोका नाशकर चोरानवे मुनियों सहित मादों सुदी चतुर्दशीको मोक्ष गये। ...
(१२) आपके मोक्ष जानेपर इन्वादि देवोंने दाह क्रिया की और निर्वाण कल्याणकका उत्सव मनाया।
पाठ छब्बीसवाँ । द्वितीय प्रतिनारायण-तारक । (१) भगवान् वासपूज्यके समयमें भोगवर्द्धनपुरके राजा श्रीधरके पुत्र तारक इस युगके द्वितीय प्रतिनारायण थे।
(२) यह भी दक्षिण भरतखड-तीन खडके-स्वामी थे। (३) यह बड़ा प्रतापी परन्तु अन्यायी राना था।
(४) मत्र इसकी आज्ञा हिपृष्ट नामक नारायणने नहीं मानी तर उनके नाश करनेके रिये इसने एक दूत भेजकर कहलाया कि तुम्हारे यहाँ जो गंघ नामक हाती है सो वह हमें दो नहीं तो तुम्हारा मस्तक काट लिया जावेगा । इसपर इनका परम्पर युद्ध हुआ । प्रतिनारायणने नारायण हिष्ठ पर चक्र चलाया चक्र, नारायणकी प्रदक्षिणा देकर उनके दहिने हाथमें व्दर गया तर नारायाने वरपर बलाया निमजे तारकको मृत्यु हुई और यह सात नरक गया।