Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 127
________________ ११९ प्राचीन जैन इतिहासा(ख) मानस्तंभके आस पास वावड़ियां होती हैं। (ग) मानस्तंभसे आगे चलकर लता-वन होते हैं जिनमें छहों ___ऋतुओंके फल-फूल लगे रहते हैं। (घ) लता-वनसे आगे पहिला कोट है जिसकी क्रांति रत्नके समान होती है। इसके दरवाजेपर देव लोग द्वारपालका कार्य करते हैं और इसके छज्जोंपर आठ मंगल द्रव्य रक्खे रहते हैं। (ड) इस पहिले कोटके दरवाजेके अनतर दोनों ओर दो नाटय शालायें होती हैं। (च) नाट्यशालाओंके आगे मार्गके दोनों ओर दो धूपघट रहते हैं। (छ) इससे आगे, मार्गके दोनों ओर दो दो, वन होते हैं। ये चारों वन आम, सप्तपर्ण, अशोक और चंपाके हुआ करते हैं। इन वनोंमें चैत्यवृक्ष होते हैं। जिनमें जिनेन्द्र भगवान्की मूर्ति होती है । इन बोंके बाद वनकी वेदी रत्नोंसे नड़ी हुई होती है। () वनकी वेदीके बादकी भूमिपर एकसो आठ ध्वजायें होती हैं इन ध्वनाओंपर सिंह, वस्त्र, कमल, मयूर, हाथी, गरुड़, पुष्पमाला, बैल, इस और चक्र ये दश चिन्ह होते है। (झ) इसके बाद दूसरा कोट रहता है यह चांदीका होता है। इसके दरवाजे के बाद दोनों ओर फिर दो नाटयशालाएं (ञ) इनके बाद कल्पवृक्षोंका वन होता है। इस वनमें सिद्धार्थ वृक्ष होते हैं जिनमें सिद्ध परमेष्टीकी प्रतिमा रहती है। इस बनकी भी वेदी रहती है।

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