Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 141
________________ १६७५ प्राचीन जैन इतिहास। अग्नी विद्याओं के बलसे आकाशमें चलते फिरते थे और आकाश मार्ग ही से प्रायः युद्ध करते थे । इनके बहुतसे कार्य विद्या बलसे होने के कारण ये विद्याधर कहलाते थे । आकाश मार्गमें ये लोग विमानों के द्वारा भ्रमण करते थे। इन विमानोंकी गति बहुत तीव्र हुआ करती थी। ये लोग आर्यखंडके रहनेवालोंसे भूमिगोचरी कहते थे । इतिहासके देखनेसे ज्ञात होता है कि भूमिगोचरी थी विद्याधर हो सकते थे । विद्याघरोंको विद्याएँ तीन मार्गोसे मायः प्राप्त हुआ करती थीं । पहिला माग-वित्रा सिद्ध करना, दूसरा मार्ग अपने पूर्वनोंसे प्राप्त करना और तीसरा माग घरणेन्द्र आदि देवोंद्वारा प्राप्त होना । ये सब विद्याएँ प्रायः देवोंके आधीन हुआ करती थीं । अर्थात् विद्या संबंधी सर्व कार्य देव किया करते थे। विद्याओं के बलसे विद्याधर क्षणमात्रमें नगर बना और वसा देते थे। मनुष्यों के कई रूप बना लिया करते थे । सारांश यह कि जो ये चाहते वही तत्क्षण बननाया करता था । वर्तमान अवसपिणी कालमें विद्याधरोंके सवसे पहिले राना नमि विनमी हुए हैं। ये भूमिगोचरी थे । और जब भगवान आदिनाथने कुटुम्बियों आदिको राज्य वितरणकर तप धारण कर लिया था तब उक्त दोनों भाइयोंने बोकर भगवान्मे राज्य मागा था उस समय धरणेन्द्रने इन्हें कई विद्याप देकर विद्याघरोंकी दोनों श्रेणियों के राजा बना दिये थे । विद्याधर अपनी कन्याएं भृनिगोचरीको भी दिया करने थे और लेते भी थे । नमि विनमिने अपनी वहिन समद्राका विवाह भरत चक्रवर्ती से किया था जो कि भूमिगोचरी थे। आकाश मार्गसे युद्ध करनेपर भी भूमिगोचरी इन्हें जीत भी सकते

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