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'प्रथम भाग |
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थे । पर उसके लिये बड़े बलकी आवश्यकता होती थी । भूमिगोचरी भी विद्याएँ रखते थे, पर बहुत कम । विद्याधरोंका युद्ध भी प्राय विद्याओंसे हुवा करता था । एक पक्ष विद्याओंसे सर्प छोडकर शत्रु पक्षके योद्धाओको कष्ट देता तो दूसरा पक्ष गरुड़ोको छोड़ता था । कभी एक पक्ष बादलोंको बना और जल वर्षाकर कटकमें अन्धकार करता तो दूसरा पक्ष दूसरी जातिको विद्यासे उसे दूर करता । इसी प्रकार विद्याओं और बाणोंसे युद्ध हुआ करता था | पृथ्वीपर भी युद्ध करते थे । भगवान् वासुपूज्यके समय तक विद्याधरों में ऐसे कोई प्रसिद्ध पुरुष नहीं हुए है जिनके कारण वहाँके इतिहास में कुछ परिवर्तन हुआ हो । मौर यद्यपि इनके आचार विचार आर्यखंडके मनुष्योंही के समान प्राय होते थे पर तो भी इनकी जाति आर्यखंडके निवासियों से पृथक होनेके कारण हमने इस भागमें इनका कुछ विशेष वर्णन नहीं दिया हैं |