Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 131
________________ भधम भाग 1. १२४ ३ भवनवासियोंके यहाँ ध्वनिका स्वयं होना । ४ व्यंतरोंके यहाँ तासका बनना । ५ इन्द्रका आसन कॅपने लगना । (ग) आसनके कँपने - हिलने पर इन्द्र अवधिज्ञान से तीर्थकर के उत्पन्न होने का हाल जानता है और उसी समय आसन से उठकर नमस्कार करता है । फिर वह एक लाख योजनका हाथी विक्रियासे बनाता है जिसकी सात सूडें होती है । इसे ऐरावत । हाथी कहते है । प्रत्येक सुँडपर दो दात और प्रत्येक दातपर एक २ तलाव बनाता है, प्रत्येक तलाव में एकसो पच्चीस कमलिनिया नाता है, जिनमें एक सो आठ पाखुडो के पच्चीस पच्चीस कमलके फूल होते है, कमलके फुलकी प्रत्येक पाखुड़ीपर अप्सरायें नृत्य करती हैं । ऐसे हाथीपर चढ़कर प्रथम स्वर्गके इन्द्र व इन्द्रानी तथा और भी इन्द्र, मय अपने परिवार और देवोंकी प्रजाके साथ भगवान्के जन्म-नगरमें आते है । और उस नगरकी तीन प्रदक्षिणा जय जय शः बोलते हुए देते हैं । फिर इन्द्रानीको प्रसूति गृहमें भेजते हैं वहाँ इन्द्रानी मायारूप दूमरा चालक रखकर तीथकरको उठा लाती है और इन्द्रके हाथोंमें देती है, तब इन्द्र उन्हें नमस्कार करता है और उनके सुंदररूपको देखने के लिये एक हजार नेत्र बनाता है तो भी तृप्त नहीं होता। फिर प्रथम स्वर्गका इन्द्र भगवान्को उस हाथीपर गोदी में बिठलाकर मेरु पर्वतपर जाता है । मार्ग में ईशान इन्द्र भगवान्पर छत्र लगाता है ' और सनत्कुमार व महेन्द्र नामक इन्द्र चेंबर ढालते हैं । बाकीके

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