Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ प्रथम भाग। - १९२० परिशिष्टमें जो कुछ लिखा गया है वह सब चौवीस तीर्थकरोंके जीवन संबंधीं समझना चाहिये। (१) तीर्थकगेंका शरीर-तीर्थंकरों के शरीरमें साधारण मनुप्यके शरीरसे निम्नलिखित विशेषतायें होती हैं। (क) संसारके दूसरे मनुष्योंमें न पाया जाय ऐसा रूप । (ख) सुगंधयुक्त शरीर। (ग) शरीरमें पसीना न होना। (घ) मल-मूत्रका न होना। (ङ) इनके सब वचन मीठे और हितरूप होते हैं। (च) किसीमें न पाया जाय इतना (अनुपम) बल | (छ) सफेद रुधिर (खून)। (ज) शरीरमें एक हनार आठ लक्षण । (झ) शरीरके आंगोपांगोंका यथोचित स्थानपर-सममागमें होना। (ल) वजवृषभनाराचसहनन (किसी भी तरहसे छिद-मिद न सके ऐसा शरीर) ये जन्मके दश अतिशय कहलाते है। (२) पंच कल्याणक-प्रत्येक तीर्थकरके पंच कल्याणक उत्सव इन्द्रादि देवों द्वारा किये जाते है अर्थात गर्भके समय, जन्मके समय, तपके समय, केवलज्ञान प्राप्त होनेपर और मोक्ष मानेपर | ये पांचों कल्याणकोत्सव सब तीर्थंकरोंके एकसे होते हैं। इन उत्सवोंमें इस भाति कार्य किया जाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143