Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 138
________________ ११३ प्राचीन जैन इतिहास। परिशिष्ट "ज"। पुराणकारों में परस्पर मतभेद । इस पुस्तकमें (प्राचीन जैन इतिहास) जो कुछ लिखा गया है वह जैनसमाजके अनन्य श्रद्धास्पद भगवान् जिनसेन और गुणभद्रके मतसे लिखा गया है, पर अन्य प्रथकारोंका इनसे किसी किसी घटनामें मतभेद है । यहां वही दिखलाया जाता है। (१) भगवान ऋषभदेवके गर्ममें आनेकी निथि आदिपुराणकार श्रीजिनसेनस्वामीने आषाढ मुदी दून मानी है । और हरिवंशपुराणकार जिनसेनस्वामीने आषाढ वदी द्वन मानी है। । (२) भगवान् ऋषभदेवकी स्त्रियोंका नाम आदिपुराणकार यशस्वती और सुनदा बतलाते हैं; पर हरिवंशपुराणकारने नंदा और सुनंदा लिखा है । संभव है कि यशस्वतीका उपनाम नंदा भी हो। (३) मादिपुराणकारने सोमप्रम, हरि, अकंपन और काश्यपको कुरु आदि चार वंशोंके स्थापक माना है; पर हरिवंशपुराणकार-कुरु आदि वंशोंके स्थापक भगवान् ऋषभहीको मानते हैं। () आदिपुराणकारने हरिवंशकी उत्पत्ति भगवान् ऋषभके समयमें महामंडलेश्वर " हरि" के द्वारा बतलाई है; पर हरिवंशपुराणकार लिखते हैं कि शीतलनाथ भगवान के तीर्थ समय में चंपापुरीके राजा हरिसे हरिवंशकी उत्पत्ति हुई। (५) ब्राह्मण वर्णकी उत्पत्तिके संबंधमें आदिपुराणकारने लिखा है कि भरत चक्रवर्तीको जब दान देनेकी इच्छा हुई तब

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