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प्रथम भाग ।
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नोट- भगवानका विहार भी बिना इच्छा होता है । विहार करने
समय भाव अघर - भाकाशमेंटने
और care arisi
कमल रचते जाते हैं ।
(ज) विहारके समय जय जय शब्दका होना ।
(झ) मंद मंद सुगंधित वायुका चरना ।
(ञ) सुगंधित जल ( गंघोदक ) की वर्षा होना ।
(ट) भूमिका कंटक रहित हो जाना ।
(ठ) पृथ्वीपर हर्ष ही हर्षका होना ।
(ड) धर्मचक्रका आगे चलना ( विहार के समय यह चक्र आगे आगे चलता है ) ।
(a) अष्टमंगळ द्रव्योका आगे चलना ।
(ग) केवलज्ञान होनेपर भगवान् की समवशरण नामक एक सभा बनाई जाती है । इस सभाका पूरा वर्णन परिशिष्ट 'घ' दिया गया है।
(घ) केवलज्ञान होने पर निम्नलिखित माठ प्रातिहार्य होते है । (क) मशोक
(ख) सिंहासन
(ग) तीन छत्र
(घ) मामडल
(ड) दिव्यव्वनि
(ज) पुप्पवृष्टि (छ) चौसठ चमर