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________________ प्रथम भाग । १२८ नोट- भगवानका विहार भी बिना इच्छा होता है । विहार करने समय भाव अघर - भाकाशमेंटने और care arisi कमल रचते जाते हैं । (ज) विहारके समय जय जय शब्दका होना । (झ) मंद मंद सुगंधित वायुका चरना । (ञ) सुगंधित जल ( गंघोदक ) की वर्षा होना । (ट) भूमिका कंटक रहित हो जाना । (ठ) पृथ्वीपर हर्ष ही हर्षका होना । (ड) धर्मचक्रका आगे चलना ( विहार के समय यह चक्र आगे आगे चलता है ) । (a) अष्टमंगळ द्रव्योका आगे चलना । (ग) केवलज्ञान होनेपर भगवान् की समवशरण नामक एक सभा बनाई जाती है । इस सभाका पूरा वर्णन परिशिष्ट 'घ' दिया गया है। (घ) केवलज्ञान होने पर निम्नलिखित माठ प्रातिहार्य होते है । (क) मशोक (ख) सिंहासन (ग) तीन छत्र (घ) मामडल (ड) दिव्यव्वनि (ज) पुप्पवृष्टि (छ) चौसठ चमर
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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