Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 123
________________ ११५ प्राचीन जैन इतिहास । (७) आप बालब्रह्मचारी थे । कुमार अवस्थाके बाद आपको वैराग्य हुआ और फाल्गुन वदी चतुर्दशी के दिन छहसो छियत्तर राजाओं सहित तप धारण किया। चौथा मन:पर्ययज्ञान आपको उत्पन्न हुआ । और इन्द्रादि देवोंने तप कल्याणक उत्सव मनाया । (८) एक दिन उपवासकर दूसरे दिन महापुरके राजा सुंदरनाथके यहां आपने आहार लिया। देवोंने राजाके यहां पंचाश्चर्य किये । (९) एक वर्ष तपकर माघ सुदी द्वादशीके दिन केवलज्ञान प्राप्त किया । इन्द्रादि देवने समवशरण सभा बनाकर केवलज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया । (१०) आपकी सभा में इस भाँति चार प्रकारका संघ था६६ धर्म आदि गणधर १२०० पूर्वज्ञानधारी ५४०० अवधिज्ञान धारी १९२०० शिक्षक मुनि ६००० केवल ज्ञानी १०००० विक्रिया रिद्धिके धारी ६००० मन:पर्यय ज्ञानी ४२०० चादी सुनि १०६००० धरसेना आदि आर्यिकाएँ २००००० श्रावक ४००००० श्राविकाएँ (११) समस्त आर्यखंडमें विहार कर आयुमें एक हजार

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