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प्रथम भाग।
उद्यत हुए और उन्होंने अपने कुलदेव नागमुख व मेघमुख द्वारा भरतकी सेना में जल वर्षा कर उपद्रव किया तब सेनाके तंबकी आहिरसे जयकुमाग्ने रक्षा की थी और फिर दिव्यास्त्रोद्वारा इन दोनों देवोंको जीता था | इसपर प्रसन्न होकर चक्रवतीने इन्हें मेघेश्वरका उपनाम दिया तथा मुख्य शूरवीरके स्थानपर नियुक्त किया।
(८) काशीनरेश महाराज अकंपनने जा अपनी पुत्री सुलोचनाका स्वयंवर किया तब जयकुमार मी गये थे व अन्य कई विद्याधर तथा राजकुमार माये थे। महारान भरतके ज्येष्ठ पुत्र भकीर्ति भी उस स्वयवरमें आये थे । परन्तु सुलोचनाने जयकुमारको ही वरमाला पहिनाई थी। इस युगमें यही पहिला स्वयंवर हुआ और यहींसे स्वयंवरकी रीति शुरू हुई। । (९) सुलोचना मुदरी, स्वरूपवती, शीलवती और विदुषी सी थी।
(१०) सुलोचनाका भयकुमारको वरमाला पहिनाना महाराम अरतके ज्येष्ठ पुत्र अनीतिको वडा खटका और वह दुर्मर्षण नामक दुष्ट पुरुषो उमकानेसे जकुमारसे लड़नेको उद्यत हुआ। जयकुमारन भी यह कहकर समझाया कि माप हमारे स्वामी महाराज मरतके पुत्र हैं, आपको अन्याय मार्गसे लड़ना उचित नहीं है अब सुलाचनाने स्वयं ही मुझे वरमाला पहनाई है तब पारस क्रोधित होना अन्याय है। इसी प्रकार अनवद्यमति नाम अकि मंत्रीने भी बहुत समझाया पर यह नहीं माना। चावार होत नयकुमारने युद्ध किया । इस युग; भायखडका