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९ प्राचीन जैन इतिहास। १९००० केवल ज्ञानी १९८०० विक्रिया ऋडि धारी साधु १२१५० मनःपर्यय ज्ञान घारी १२००० वादी मुनि ३३०००० धर्मादि मार्थिकाएँ '३००००० श्रावक '५००००० श्राविका
(१२) भगवान् संभवनाथने चौदह वर्ष एकमाप्त कम एक लाख पूर्व समय तक विहारकर प्राणीमात्रको उपदेश दिया।
(१३) जब भगवान्की आयुका एक माह शेष रह गया तब भगवान्की दिव्यध्वनि बंद हुई । इस एक माहमें भगवानने वॉकी के चार कर्मोका नाश किया । और मिती चैत्र शुदी छठको एक हजार मुनियों सहित सम्मेदशिखर पर्वतसे मोक्ष पधारे। भगवान्के मोक्ष नानेपर इन्द्रादिकोंने भगवानकी दाहक्रिया की और निर्वाण कल्याणक उत्सव मनाया।
१ प्रत्येक तीर्थकरके समान इनके लिये भी घखामूपण स्वर्गसे आते थे व देवगण पालक र घारणकर बाल्यावस्थामें इनके साथ सेलते ये व रलोकी या, पचायर्यगर्भ, जन्म, तप, शान, निर्वाण इन पैचोकल्याणोंके उपद इनमे पूर्वके तीर्थकरके ही धमान विना किसी न्यूनताके इन्द्रादि देवोने किये थे।