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प्रथम भाग ।
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होते ही केवलज्ञानके देश अतिशय प्रगट हुए और माप मनंत
चतुष्टय युक्त हुए ।
(१२) आपने माये खंड में विहार किया और प्राणियोंको दिव्यध्वनि द्वारा हितका मार्ग बताया ।
(१३) भगवान् चंद्रप्रभुके समवशरण में चतुर्विध संघ मनुष्य इस भाँति थे ।
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९३ दत्तमुनि आदि गणधर २००० पूर्व ज्ञानके धारी
८००० अवधि ज्ञानी
२००४०० शिक्षक साधु १०००० केवलज्ञानी
१४००० विक्रिया ऋद्धिके वारक.
८००० मन. पर्यय ज्ञानी. ७६०० वादी मुनि.
१८०००० वरुणा आदि आर्यिकाएँ
३००००० श्रावक
५००००० श्राविकाएँ.
(११) आपकी आयुमें जब एक माह शेष रहा तब आपका विहार बंद हुआ और आप सम्मेदशिखर पर पधारे। इसी समय से आपकी दिव्यध्वनिका दोना बंद हुआ। अंतमें फागुन छुट्टी
नमीको मौका नाशकर एक हजार राजाओं सहित सम्मेदविरार मेक्ष पधारे। नोक्ष जानेपर इन्द्रादि देवोंने निर्वाण
व्यापक उत्पन मनाया ।