Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 119
________________ प्रथम भाग । १११ (२) अश्वग्रीव पहिला प्रतिनारायण था । प्रत्येक प्रतिनारायण तीन खंडोंके (चक्रवर्त्तीसे आधे ) राज्यके स्वामी होते हैं इसी नियमके अनुसार प्रतिनारायण अश्वग्रीव तीन खंडका ( दक्षिण भरतक्षेत्रका ) स्वामी था। इसके यहाँ चक्ररत्न था । (३) विजयाई पर्वतकी दक्षिण बाजूका क्षेत्र दक्षिण भरतक्षेत्र कहलाता है । इस सब क्षेत्रको अधमीवने वश किया था और इस क्षेत्रके राजाओं को अपने आधीन कर लिया था । ( 8 ) इसकी आठ हजार रानियाँ थीं । (९) इसके समय में त्रिपृष्ठ नामक नारायण' उत्पन्न हुआ था | ( जिसका वर्णन आगेके पठमें है । ) अभ्वग्रीव के लिये किसी राजाके यहाँ से भेट आ रही यी उस भेंटको नारायण पृष्टने छुड़ा लिया | भेंटके साथ एक सिंह था उसे भी मार डाला | यह हाल सुनकर अश्वपीवने चिंतागति, मनोगत, नामक दो दूत भेजकर नारायण तृपृष्ठको आधीन होनेका संदेश भेजा जिसे नारयणने अस्वीकार किया। तब दोनोंका युद्ध होना निश्चय हुआ । पहिले तो सेना के साथ युद्ध होनेका निश्चय हुमा था, परंतु मत्रियोंके समझाने पर दोनोंका परस्पर युद्ध हुआ । जिसमें अश्वग्रीव हारा और उसका राज्य नारायणके आधीन हुआ । नारायणने अपने श्वरको विद्यावर श्रेणीका राजा बनाया है प्रतिनारायणका चक्र'त्न नारायणके यहाँ आया । 3

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