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प्रथम भाग।
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(१०) एक दिन आकाशमें उल्कापात देखकर वैराग्य उत्पन्न हुआ और अपने पुत्र सुमतिको राज्य देकर मिती मार्गशीर्ष सुदी पड़िवाके दिन दीक्षा धारण की। वैराग्य होते ही लौकांतिक देवोंने आकर स्तुति की और फिर इन्द्रादि देवोंने अभिषेक पूर्वक तप कल्याणक उत्सव मनाया । तप धारण करते ही आपको मन.पर्यय ज्ञान उत्पन्न हुआ । मापने. पुष्पक बनमें उप धारण किया था । वनमें आप सूर्यप्रभा नामक पालकीपर चकर गये थे।
(११) पहिले ही आपने दो दिनका उपवास धारण किया। उपवास पूर्ण होने ही सपलपुरमें पुष्पमित्र नामक राजाके यहाँ आपका आहार हुआ तब देवोंने रत्न वर्षा आदि पांच भार्य किये।
(१२) चार वर्ष तप करनेपर मिती कार्तिक सुदी दूजले दिन भगवान्को केवलनान उत्पन्न हुआ । समवसरण सभा बनाई गई और इन्द्रादि देवोंने ज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया। (१३) आपकी समवशरण सभामें इसप्रकार शिष्य थे।
विदर्भ आदि गणधर १५०० श्रुत केवलि. . १९६५०० शिक्षक मुनि.
८४०० भवधिज्ञानी. ७००० केवलजानी. १३००० विक्रिया रिद्धिक धारक. ७६०० मन पर्यय ज्ञानी.