Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ भवय भाग । ८८ (७) आयुर्मे जब एक लाख पूर्व बाकी रह गया तब एक दिन आपने बादलोंको तितर बितर होते देख संसारको भी इसी मुताविक क्षणभंगुर समझा और वैराग्य रूप भाव कर तप धारण करनेको विचार किया । इन विचारोंके होते ही लौकांतिक देवोंने आर स्तुति की। (८) अपने ज्येष्ट पुत्रको राज्य देकर भगवान् संभवनाथने सहेतुक वनमें तप धारण किया। इस समय इन्द्रोंने तप कल्याणकका उत्सव किया था | भगवान्को मन पर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ | (९) पहिले ही भगवानने दो दिनका उपवास धारण किया । उपवास पूर्ण होने पर श्रावस्ती नगरीके राजा सुरेन्द्रदत्तके यहाँ बाहार किया। भगवानके आहार लेनेके कारण देवोंने रत्न वर्षा आदि पंचाधर्य किये । (१०) चौदह वर्ष तक तपकर एक दिन भगवान् संभवनाथने शालि वृक्ष के नीचे दो दिनका उपवास धारण किया | वहीं पर भगवान्को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । यह कार्तिक मासकी कुन्ण चतुर्थीका दिन था । केवलज्ञान होनेपर इन्द्रादि देवोंने पूजा और समवशरणकी रचना कर केवलज्ञान कल्याणक्का उत्सव सनाया । (११) भगवान्की समामें इस भांति चतुर्विय संघ था। १९० चारुपेणादिक गणवर २,१५० साधु ( शिक्षक ) १,२९,३०० पूर्वज्ञानके धारी ९,६०० नवविज्ञानके धारी

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143