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भवय भाग ।
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(७) आयुर्मे जब एक लाख पूर्व बाकी रह गया तब एक दिन आपने बादलोंको तितर बितर होते देख संसारको भी इसी मुताविक क्षणभंगुर समझा और वैराग्य रूप भाव कर तप धारण करनेको विचार किया । इन विचारोंके होते ही लौकांतिक देवोंने आर स्तुति की।
(८) अपने ज्येष्ट पुत्रको राज्य देकर भगवान् संभवनाथने सहेतुक वनमें तप धारण किया। इस समय इन्द्रोंने तप कल्याणकका उत्सव किया था | भगवान्को मन पर्ययज्ञान उत्पन्न हुआ |
(९) पहिले ही भगवानने दो दिनका उपवास धारण किया । उपवास पूर्ण होने पर श्रावस्ती नगरीके राजा सुरेन्द्रदत्तके यहाँ बाहार किया। भगवानके आहार लेनेके कारण देवोंने रत्न वर्षा आदि पंचाधर्य किये ।
(१०) चौदह वर्ष तक तपकर एक दिन भगवान् संभवनाथने शालि वृक्ष के नीचे दो दिनका उपवास धारण किया | वहीं पर भगवान्को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । यह कार्तिक मासकी कुन्ण चतुर्थीका दिन था । केवलज्ञान होनेपर इन्द्रादि देवोंने पूजा और समवशरणकी रचना कर केवलज्ञान कल्याणक्का उत्सव
सनाया ।
(११) भगवान्की समामें इस भांति चतुर्विय संघ था। १९० चारुपेणादिक गणवर
२,१५० साधु ( शिक्षक )
१,२९,३०० पूर्वज्ञानके धारी
९,६०० नवविज्ञानके धारी