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८६ प्राचीन जैन इतिहास । तप करेंगे। अब तुम मनुष्य हुए हो अतएव तप धारण करो। पर सगरने यह स्वीकार नहीं किया । उसने बहुत प्रयत्न किये के सब निष्फल हुए । एकवार मणिकेतु (देव) चारण मुनियोंका रूप धारणकर सगरके यहाँ आया और संसारको अनित्यताका उपदेश दिया पर विस पर भी सगरने गृहस्थावस्था नहीं छोड़ी।
(१०) सगरके साठ हमार पुत्रोंने एकवार अपने पितासे प्रार्थना की कि अब हम जवान हो गये हैं। क्षत्रिय हैं । अतएक कोई असाध्य कार्य करनेको हमें भाज्ञा दीजिये जिसे हम सिद्ध करके लावें । उस समय तो चक्रवर्तीने कह दिया कि पृथ्वी जीत ली गई है कोई भी असाध्य कार्य नहीं है पर कुछ दिनों बाद उन पुत्रोंके दुवारा प्रार्थना करनेपर चक्रवर्तीने आज्ञा दी कि जलाशपर्वतके चारों ओर गगा नदीका प्रवाह वहा दो। क्योंकि कैलाश पर्वतपर भरत चक्रवर्तीक बनवाये हुए रत्नमय जिन-मंदिर हैं और अगाडीका काल समय अच्छा न होनेके कारण उन मंदिरोंकी हानिकी संभावना है । इस पर पुत्र, दंड रत्न लेकर गये और कैलाशके चारों ओर जलका प्रवाह कर दिया। ' (११) इसी समय ऊपर कहे हुए सगरके मित्र मणीकेतु देवने अपने मित्रको संसारसे उदास करनेके लिये सर्पका रूप धारण लिया और अपनी विषमय फुकारसे मगरके सब पुत्रोंको मचेत कर दिया व आप एक मुदेको कधे पर लादकर वृद्ध ब्राह्मणका रूप धारणकर चक्रवर्ती के पास गया और कहने लगा कि मेरा पुत्र मर गया है आप सबके रक्षक हैं अतपद मेरे पुत्र की रक्षा करें