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८३ प्राचीन जैन इतिहास + (१४) सर्वज्ञ अवस्था, मगवान्ने पृथ्वीपर विहार किया
और उपदेश दिया । आपका विहारकाल बारह वर्ष एक माह कम एक लाख पूर्व है।
- (११) जब आयुमें एक माह वाकी रह गया तब आपकी दिव्यध्वनि बंद हुई और उत्कृष्ट घ्यान द्वारा शेष चार कर्मोना नाश उस एक माहमें कर चैत्र शुदी पंचमोके दिन आप मोक्ष पधारे।
(१६) मोक्ष जानेपर इन्द्रोंने ऋषम मगान्के समान ही निर्वाण कल्याणक किया । आपका निर्वाणस्थान सम्मेदशिखर था !
(नोट ) प्रत्येक तीर्थकरके समान इनके लिये भी स्वर्गसे पसाभूषण आते और बाल्यावस्थामें देव लोग वालप वारणकर साथमें खेरते थे। रनोंकी वर्षा, पचाय और गर्भ, जन्म, नप, ज्ञान, निर्वाण ये पंच कल्याणोके उत्सव भी इनसे पूर्वके तीर्थकरों के समान्त इन्द्रादि देवोंने बिना किसी न्यूनताके किये थे।
पाठ तेरहवाँ। द्वितीय चक्रवर्ती सगर और महाराज भागीरथ ।
(१) भगवान् भनितनाथके समयमें भरत चक्रवर्ती के समान सगर नामक दूमरे चक्रवर्ती हुए थे।
(२) यह इक्ष्वाकुवंशमें उत्पन्न हुए । इनके पिताका नाम समुद्र विनय और माताका नाम सुवाका था।
१ सम्मेदशिखा बंगालमें है। वर्तमानमें यह पाश्वेताय हिट पा) नानरे बने