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प्रथम भाग। ओंने भी दीक्षा ली थी। पहिले ही इन्होंने छह उपवास किये थे।
(१०) उपवासके दिन पूर्ण हो जानेपर भगवान ने ब्रह्मभूत राजाके घर आहार लिया । इसके यहाँ देवोंने पंचाशय किये ।
(११) भगवान् अजितनाथने बारह वर्ष तक तप किया और चार घातिया कर्मोका नाश कर पौष सुदी ११ को केवलज्ञानी (सर्वज्ञ) हुए।
(१२) केवलज्ञान होनेपर इनका भी इन्द्रोंने केवलज्ञान कल्याणक उत्सव किया । समवशरण समा बनाई जिसमें भगवानकी त्रिकाल दिव्यध्वनि होती थी जिसके द्वारा भगवान् प्राणियाको हितकर उपदेश देते और सिद्धांत बतलाते थे। (१३) भगवान्की समामें इस माति चतुर्विध सघ था।
९. सिंहसेनादि गणधर ३७९० पूर्वज्ञानके धारी मुनि २१६०० शिक्षक मुनि
७४२० तीन ज्ञानके धारी २०००० केवलज्ञानी . २०४०० विक्रियाऋद्धिके धारक साधु १२१५० मनःपर्ययज्ञानके धारी
२२४०० वादी मुनि १,२०,००० आर्थिका ५,००,००० श्राविका १,००,००० श्रावक