Book Title: Prachin Jain Itihas 01
Author(s): Surajmal Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 80
________________ ७१ प्राचीन जैन इतिहास नेवाली नाग नागिनीने भी धर्म श्रवण किया। कुछ दिनों बाद वह नाग मरकर नागकुमार जातिका देव हुआ। और नागिनी काकोदर नामक विजातीय सर्प के साथ रहने लगी । महाराज जयकुमार जब दुवारा उस वनमें गये और नागिनीको उस विजातीय सके साथ देखा तब उसे व्यभिचारीणी समझ इनको क्रोध हुआ और अपने हाथके कमल पुप्प द्वारा उसका तिरस्कार किया। वे दोनों बहाँसे भागकर जब वस्ती में आये तो दुष्ट मनुष्योंने उन दोनोंको मार डाला । वे दोनों मरकर नागिनी तो अपने पूर्व स्वामी जो नागकुमार जातिका देव हुआ था उसकी स्त्री हुई और सर्प गंगा नदीमें कालो नामक जलदेवी हुआ | नागकुमारकी स्त्री (पूर्वभवकी सर्पिणी) ने अपने पतिसे जयकुमार द्वारा तिरस्कार किये जाने और फिर नगरवासियों द्वारा मारे जाने के समा-' चार कहे, इसपर वह क्रोधित होकर रात्रिके समय जयकुमारको मारने आया | इधर जयकुमार भी अपनी रानी श्रीमत' से उस व्यभिचारिणी नागिनकी बात कह रहा था। सो उस देवने सुनकर मारने का विचार बदल दिया और जयकुमारसे अपनें कपटकी बात कह जयकुमारी प्रशंसा करने लगा और कह गया कि उचित समय पर आप सुझे याद करना । (६) जयकुमारने जब खुना कि भारतकी विजयको जाते हैं तव ये भरतकी सेना में आकर शामिल हुए और चक्रवर्तीक साथ उत्तर भारतकी विजयको गये । (७) उत्तर भारतकी विजय करते हुए मध्यम खंडमें जब चिलात और आवर्त नामक दो म्लेच्छ राजा भरतसे लड़नेको

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