________________
५३ प्राचीन जैन इतिहास । ओरका पश्चिम म्लेच्छ खंड जीता और मध्यम खंड जीतनेको चले । इस खंड के कई राजा को वश किया; परन्तु चिलात और आव नामके गज़ा युद्ध करनेको तैयार हुए। इन दोनों मंत्रियोंने चक्रवनिकी मामर्थ्यका वणन सुनाकर युद्ध करनेसे रोश सव.इन दोनोंने अपने कुल देव मेघमुख और नागमुखकी आगधना की इन दोनों देवोंने मेक्का रूप धारण किया और वायु चलाई तथा मेघमुखने पानीको वर्षा इतनी अधिक की कि भरत की सेना उममें डूबने लगी । परन्तु तो मी भरतके तंबूमें नाका कुछ भी असर न हुआ । भरतमें इस समय अपनी सेनाकी रक्षाके लिये नीचे चर्मरत्न विछाया और ऊपर छत्ररत्न लगाया। ये दोनों रत्न चारद योजनके थे। इन रत्नोका अंडाकार सबू बन गया था जिसमें चक्रानका प्रकाश होता था। इसीके भीतर सेना सात दिन तक रही थी। इसके भीतर सेन पति और बाहिर जयकुमार रक्षा करते थे। इम उपद्रवमे बचानेके लिये सिलावट रत्नने कपडे के अनेक तबू व घासकी झोपड़ियां तथा आकाशगामी स्थ बनाये थे। चक्रानिकी आज्ञासे गणपड जाति के व्यतर देवाने नागसुखको हटाया और जयकुमारने दिव्य शस्त्रोंसे उन नागमुख और मेघ पुखको मीता { अंतमें वे दोनों म्लेच्छ राजा चक्रवर्तित वश हुए : यहांसे चलकर भात, सिंधु नदीके किनारे किनारे जहांसे सिंधु नदी निकली है उस हिमवान् पर्वतके सिंधु दहके पास पहुंचा यहांपर सिंधु देवीने भरवका अभिषेक किया और भन्दापन नामक सिंहासन दिया। यहांसे चलकर हिमवान् पर्वतके किनारोंको जीतते हुए हिमवान् पर्वतके हिमवान् शिखरपर पहुंदे।