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प्रथम भाग।। . ६४
(८) मूर्तीको नाचते हुए देखना सुचित करता है कि अगाड़ी व्यंतरोंको ही लोग देव-श्वर मानेंगे।
(९) सरोवरको किनारे किनारे अच्छी तरह जलसे मरे हुए और बीचमें सूखे हुए देखनेका फल यह है कि धर्म नीच देशोंमें रहेगा।
(१०) रत्नोंकी राशिओ धूलसे भरा हुआ देखनेका फल यह है कि पंचम कालमें कई शुक्लध्यानी न होगा।
(११) श्वानकी पूजा तथा द्वारा पूनाका नैवेद्य भक्षण होते हुए देखनेश फल यह है कि गुणवान् पात्रके समान अवती आवकोश सत्कार होगा।
(१२) शब्द झाते हुए तरुण वृषमा देखना बतलाता है कि पचमकालमें जवान मनुष्य ही मुनिव्रत स्वीकार करेंगे, वृद्ध पुरुष नहीं।
(१३) चंद्रमाको सफेद परिषडलयुक्त देखनेका फल यह है कि साधुओंको मनापययज्ञान व अवधिज्ञान न होगा।
(१४) दो बेलाको साथ साथ जाते देखनेका 'फल यह है कि साधु पंचम कालमें एकाकी नहीं रहगे ।
(१५) सूर्यका आच्छादित देखना बतलाता है कि पचम कालमें केवलज्ञान नहीं होगा। -
(१६) सूखे वृक्ष देखनेका फल यह है कि पंचम काल में मनुप्य प्रायः दुराचारी होंगे।
(१७) सुखे पत्ते के देखने का फल यह है कि पंचम कालमें औषधिया रस रहित हो जावेगी। .