________________
प्राचीन 'जन इतिहांस !
६५ (४८) भरत बड़े धर्मात्मा भव्य और तपस्वी थे । भरतके इन गुणोंके संबंध में नीचे 'लिखी घटनाएँ प्रसिद्ध हैं ।
(१) भरतने अपने महल व नगर के द्वारोंपर सुवर्ण और रत्नोंकी छोटो २ घटियाँ लगवाई थीं और बडे २ घंटे लगवाये थे । इनपर भगवान्की मूर्ति खोदी गई थी। इनके लगाने का कारण यह था कि जब इन घटयोंका स्पर्श महाराज भरतके मुकुटसे होता, त्यों ही भरतको भगवान्के चरणोंका ध्यान आ
जाता था ।
(२) भरते जब सामायिक करते थे तब ध्यान के कारण उनका शरीर इतना क्षीण हो जाता था कि उनके कड़े हाथों में से अपने आप निकल पड़ने थे ।
(३) एक किमने आकर भरतसे पूछा कि महाराज मैंने सुना हैं कि आप राज्य करते हुए भी बडे भागे धर्मात्मा और साधुओंके समान तपस्वी हैं मो ये दो विरोध गर्य राज्य करना और तप करना आप कैसे करते होंगे ? तर भरतने उसके हाथ तेलका कटोरा देकर अपने कटकको देखनेके लिये भेजा व आज्ञा दी की यदि एक भी बूंद तेल गिरेगा तो फॅ'सीकी सजा दी जावेगी । इधर अपने कटक चक्रवर्तीने अनेक प्रकार नाटक कराये। परंतु वह किसान कटककी ओर बिलकुल नहीं देखता था उसका ध्यान सिर्फ नेकके कटोरे की ओर था। जब वह किसान घूम कर भरतके समीप भाया तब भरवने पूछा कि तुमने मेरे कटकमें क्या देखा तब वह १, २, इन कथाओंका घर्णन आदिपुराण में नहीं है।