________________
प्रथम भाग |
"
(१९) सेनापति, गृहपति, हाथी, घोड़ा, स्त्री, सिलावट और पुरोहित ये सात सजीव रत्न थे । '
(३०) भरतकी निधियों और रत्नोंको रक्षार्थ गणबद्ध जातिके सोलह हजार व्यंतर देव थे ।
४१) चक्रवर्ती के महलके कोटका नाम क्षिविप्तार था और राजधार्न के बड़े दरवाजेका नाम पर्वतोभद्र था। महलका नाम वैजयं. त, डेरे खड़े करनेके स्थानका नाम नंद्यावर्त, दिकस्वामी नामकी समाभूमि और सुविधि नामक मणिर्याकी छड़ी थी । नृत्यशालाका नाम बर्द्धमान, भंडार का नाम कुबेरांत था और धर्मान्त
( जहां गर्मी में पानी वरमा करता था ) तथा वर्षा ऋतु रहने
·
योग्य ग्रहकृटक नामक राजभवन थे । चक्रवर्तिके स्नानघर का नाम जीसृन, कोठारचा नाम वसुधारक था ।
चक्रवर्तिकी मालाका नाम अवतसिका, देवरभ्य नामक कपडेका तंत्र सिंहवाहिनी नामक शय्या और सिहासनका अनुत्तर नाम था । चक्रवर्तीके चमरोंका अनुपमान छत्र का नाम सूर्यप्रभ था । भारतकी अन्य सामग्रीक नाम इस मकर थे ।
1
(१) कुंडल - विद्युत्प्रभ (२) खडाऊं - विषमोचिका ] (१) कवच - अभेद्य ४ ) रथ - अजितजय ( ९ ) धनुष - चक्रका (३) वाण मोध - (9) शक्ति-कुंडा ८) माला - महाटक ( ९ ) छुरी - लोहवाहिनी (१०) मनोवेग नामक कणव ( शस्त्र विशेष ) - (११, तरवार - सौनंद (१२, खेट (हथियार) - भूतमुख ( ११ ) चक्ररत्न - सुदर्शन (१४) दंडरत्न- चंड़वेग (१९) चर्मरत्न - वत्रमय