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प्रथम भाग।
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(२५) अपने कुल-घात करनेका भरतका प्रयत्न देख सबने भरतकी निंदा की और बाहुबलिने भरतको कंधेपरसे उतारकर यह कहते हुए कि, आप बड़े बलवान् हैं, उच्चासनपर बिठाया ।
(२६) भरतका इस प्रकार लज्जाजनक निंध कत्य देखकर बाहुवली संसारकी अनित्यता विचारने लगे और अंतमें उन्होंने भरतको कहा कि अब मैं इस पृथ्वीको नहीं चाहता, इसे तुम ही रखो, मैं तप करूँगा।
(२७) क्रोध शांत होनेपर भरतको अपने इस कुलनाशक' कार्यका बड़ा पश्चात्ताप हुआ । और वे अपनी निदा करने लगे। __(२८) वाहुबलीके दीक्षा ले लेनेपर भग्तने राजधानीमें प्रवेश किया । यहॉपर सव देवों और राजा महारानामों द्वारा भरतका राज्याभिषेक किया गया । इस समय भरतने बडा मारी दान किया था।
(१९) भरत चकरीकी संपत्ति इस भौति थी
(१) चौरासी लारू हाथी - (२) चौरासी लाख स्थ (१) अठान्ह करोड़ घोड़े (४) चौरासी करोड पैदल सेना (९) छहों खड पृथ्वीका राज्य (६) एक करोड़ चावल पकानेके हंडे (७) एक लाख करोड़ हल (८) तीन करोड़ गोगालाये। (९) काल १ महाकाल २ नैस्सम ३ पांडक ४ पद्म ५ माणव : पिगल ७ शंख ८ सर्वरत्न ९ ये नो निधिया थी (१०) चक्र १ छन : दड ६ खड्ग ४ मणि ५ चौ ६ काकिणी ७ ये सात निर्जीव रत्न चक्रवर्तिक यहां उत्पन्न हुए थे।