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५७ प्राचीन जैन इतिहास । की। उक्त दीक्षित छोटे माइयोंके राज्य भरतके आधीन हुए। और बाहुबली स्वतंत्र रहे।
(२०) दूतको भेजकर भरतने बाहुबलीको समझाया । परंतु वाहुबली नहीं माने, अतमें दोनों का युद्ध निश्चय हुआ। और दोनों ओरकी सेना युद्ध के लिये तैयार हुई।
(११) अब दोनों ओरसे युद्धका निश्चय हो गया और युद्ध होनेका प्रारभ ममय विलकुल पास आगया तब दोनों ओरके मत्रियोंने विचार किया कि भरत और बाहुबली दोनों चरमशरीरीइसी शरीरसे मोक्ष जानेवाले हैं अतएव इन दोनोंकी तो कुछ हानि नहीं होगी किंतु सेना निरर्थक कटेगी, यह विचारकर मत्रियोंने निश्चय किया कि सेनाका पस्पर युद्ध न कराकर इन दोनोंका-भरत और बाहुबलीका-ही युद्ध कराया जाय और अपना यह निश्चय दोनों राजाओंसे स्वीकार कराया।
(२२) मंत्रियोंने दोनों राजाओंके तीन युद्ध निश्रय कियेदृष्टियुद्ध १, जलयुद्ध २ और मल्लयुद्ध ३
(२३) इन तीनों युद्धोंमें बाहुबलीने भरत चक्रवर्तिको हराया । और मल्लयुद्ध में बाहुबलीने भरतको नीचे न पटककर कंधेपर बिठला लिया।
(२४, भरतके इस प्रकार हारनेसे उसे क्रोध हुआ और उस क्रोधके करंण उमने बाहुबली पर चक्र चलाया। परन्तु चक्ररत्न' चकवतिके कुलका नाश नहीं करता इसलिये चक्रने बाहुबलीकी प्रदक्षिणा दी और बाहुबली के समीप भाकर ठहर गया।