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प्रथम भाग
(४९) केवलज्ञान होनेपर भगवान्, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन अनंत मुख और अनंतवीर्य (वल) कर युक्त हो गये थे ।
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(१०) भगवान् देवने एक हजार वर्ष और चौदह दिन कम एकलाख पूर्व तक समबरण सभामें उपदेश दिया था । जब स्वायुके चौदह दिन शेष रह गये तब उपदेश देना बंड हुआ और परकासन लगाकर शेष क्रमका नाश करने लगे । यह दिन पोष सुदी १५ का था । इसी रात्रिको भरत चक्रवर्ति अकीर्ति, युवराज, चक्रवर्तीका गृहपति रत्न, चक्रवर्ती मुख्य मंत्री, चक्रवती के सेनापति, जयकुमार के पुत्र अनंतवीर्य, चक्रवर्तीकी पटरानी सुभद्रा, काशीनरेश चित्रागद आदि बड़े २ पुत्रपोंने कई प्रकारके स्वप्न देखे जिनका फल भगवान्का मोक्ष जाना था।
(५१) आनंद नामक पुरुष द्वारा भगवान्का कैलाशपर आगमन सुन- भरत चक्रवर्ती वहाँ गया और चौदह दिनों तक भगबान्की सेवा की ।
(५२) अतमें माघ वदी १४ के दिन सूर्योदय के समय अनेक साधुओ सहित भगवान ऋषभदेव मोक्षको पवारे । भगवान्के नोक्ष चले जानेपर देवाने आकर निर्वाणकल्याणक नामक पाचवा कल्याणकोत्सव मनाया | और गवानके शरीरका चदनादि सुगंधित द्रव्योंद्वारा अग्निकुमार जातिके देवोंके मुकुटकी अग्निसे दाह किया । भगवान् के शरीरका जहाँ दाह किया था उसके दाहनी ओर गणवरादि साधुओंके शरीरका नह किया और बाईं ओर केवलज्ञानियोंके शरीरका दाह किया और