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प्राचीन जैन इतिहास | जल, चंदन, मक्षत आदि अष्ट द्रव्योंसे भगवान की पूजा की थी। (१०) एक दिन भरत महाराजके धर्माधिकारी (कर्मचारी) ने आकर कामदेवको केवलज्ञान उत्पन्न होने के समाचार कहे और उसी समय राज्यको शस्त्र लाके अधिकारीने शस्त्रशाला में चक्रर
की उत्पत्ति समाचार कहे और महारानी के सेवकने पुत्रोत्पत्तिके समाचार कहे । ये तीनों हर्षदायक समाचार एक साथ सुनकर महाराज भरत विचार करने लगे कि पहिले किमका उत्सव मनाना चाहिये । अत में धर्म कार्यको मुख्य समझकर अपने छोटे भाइयों, राज्य कर्मचारियों और मना तथा सेना सहित भगवान् ऋषभदेवके केवलज्ञानकी पूजा के लिये भरत गये और बडे उत्साहसे केवलज्ञानकी पूना की । तथा वहाने लौटकर चक्र'नकी पूजा का फिर पुत्रोत्सव मनाया। इन उत्पा महाराजने बहुत भारी दान दिया। सडकों और गलिय में रत्नोंके ढेर कराकर बाट दिये ।
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(११) चक्रवर्ती महाराज दिग्विजय करनेको जब उद्यत हुए तब शरद ऋतुका प्रारंभ था । महाराज भरत अपनी सेना सहित दिग्विजय करनेको चले ोंने अपनी सेना चलानेका क्रम इस प्रकार रखा था कि सबसे आगे पैदल सेना, उसके पीछे सवार, उनके पीछे रथ और रथोंके पीछे हाथी ।
(१९) महाराज भारतकी सेना मार्ग में आये हुए किसानोंक खेतों को जबर्दस्ती नुकसान पहुँचाती थी ।
१. पूजनके भ्रष्ट द्रव्योंके नाम - जल, वदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल,