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३९ प्राचीन जैन इतिहास । पर ध्यान धारण किया । भगवानके बडे मारी तपश्चरण से चार घातिया कर्मोंका नाश हुआ और भगवानको केवलज्ञान सर्वज्ञत्व प्राप्त हुआ। जिस दिन भगवान सर्वज्ञ हुए वह दिन फागुन बदी एकादशीका दिन था । भगवानने एक हजार वर्ष तक तक किया था ।
(३७) भगवान्के केवलज्ञानका समाचार प्राकृतिक रीतिसे स्वयं ही स्वर्ग में पहुंच गया । इतने बडे महात्मा के सर्वज्ञ होने पर जगतमें प्राकृतिक रीतिसे विलक्षण परिवर्तन हो जाना आश्चर्यजनक नहीं कहला सकता । अतएव भगवान के सर्वज्ञ होते ही स्वगौमें बाजे स्वयमेव बनने लगे, । घटोंकी ध्वनि हुई, पृथ्वी पर चारों ओर चार चार कोशतक सुकाल हो गया, छहों ऋतुओंके फल फूल एक ही समय में उत्पन्न हो गये आदि कई आश्चर्यजनक घटनायें हुई । केवलज्ञान उत्पन्न होनेपर जो जो घटनायें होती है उनका वर्णन परिशिष्ट स० "ड" में किया गया है।
(३८) स्वर्ग में भगवान के सर्वज्ञ होने के चिन्ह प्रगट होते ही उसी समय इन्द्रोंने अपने आसन से उठकर भगवान्को नमस्कार किया और देवोंकी सेनाके साथ बडी सज-धनसे भगवान् की पूजा करनेको आये ।
(३९) केवलज्ञान होते ही भगवानका एक सभामंडप बनाया गया इसका नाम समवोरण है । यह अस्तालीस कोश लंबा और इतना ही चौड़ा था । यह समवशरण मडप बहुत ही शोभा युक्त और विलक्षणता, सहित था, क्योंकि देवोंने इसकी रचना की
१. समवशरणकी पूर्ण रचना परिशिष्ट १० (घ) में देखो.