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प्राचीन जैन इतिहास है (ड' जिन स्थानोंपर मकानात-हवे लयाँ, कई बड़े २ दरवाजे बनाये गये और प्रसिद्ध पुरुष वसाये गये उन स्थानोंका नाम नगर पड़ा।
(च) नदियों और पर्वतोंसे घिरे स्थानोंको खेड नाम दिया और चारों ओर पर्वतोंसे घिरे स्थानोंको खर्वट नाम दिया। जिन गांवोंके आस-पास पांचसौ घर थे उन्हें मडव नाम दिया गया । समुद्रके आस-पासवाले स्थानोंको पत्तन और नदीके पासवाले गावोंको द्रोणमुख संज्ञा दी।
(ख) राजधानियोके आधीन आठ आठमौ गाँव, द्रोणमुख गावोंके आधोन चार चारसौ और खर्वटोंके आधीन दो दोसौ रखे गये।
(९) भगवान्ने प्रजाको शस्त्रधारण काना व उनका उपयोग खेती, लेखन, व्यापार, विद्या और शिल्पकर्म-हस्तकौशल्य-हाथकी कारीगरी वताई।
(१०) उस समय जिन्होंने शस्त्र धारण किये वे क्षत्रिय | कहलाये और जिन्होने खेती, व्यापार और पशु-पालनका कार्य किया वे वैश्य कहलाये और इन दोनोंकी सेवा करनेवाले शूद्र कहलाते थे। इस प्रकार भगवान ऋषभदेवने तीन वर्णोकी-क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र वर्णों की स्थापना की इसके पहिले, वर्ण-व्यवहार नहीं था। यहींसे वर्ण-व्यवहार चला है और उसकी कल्पना मनुष्योंकी आजिविकाके कार्यों परसे की गई थी।
(११) उस समय भगवान्ने शोके दो भेद किये । एक