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प्रथम भाग। २८ रका निरीक्षण करते थे और योग्यतापूर्वक कार्योका संपादन करते थे।
(१) मगवान्की युवावस्थाकी सब चेष्टायें परोपकारके लिये होती थीं। और उनसे प्रनाका पालन होता था | भगवानका कुमारकाल वीसलाख पूर्वका था ।
(६) भगवान् ऋषभदेव अनुपम बलशाली और दृढतासे कार्योको करनेवाले थे । ( समयको निरर्थक नहीं जाने देते थे)
(६) भगवान् ऋषभ गणितशास्त्र, छंदःशास्त्र, अलकारशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, चित्रकला, व लेखन प्रणलीका अन्याप्त स्वयं करते थे और इसरोंजो कराते थे। मनोरजनके लिये गाना, बनाना और नाटक व नृत्य आदिकी कलामाका भी उपयोग करते थे। देवबालकों के साथ किल्ली-दंडा आदिके खेल भी खेला करते थे। ये जल्क्रोडा-तैरना आदि भी करते थे। भगवान्के उपयोगमें आनेवाली वस्तुए इन्द्र स्वर्गसे भेंटमें लाया करता था।
(७) युवावस्थामें भगवान्के पिता महाराज नानिने अपने पुत्र भगवान् ऋषभसे विवाह करनेका परामर्श किया | सब पृथ्वी को अपने आदर्श चरित्रसे चलाने और भविष्यमें रिवाहादिकामार्ग जारी करनेके लिये आपने अपनी सम्मति दी। वह सम्मति केवल ॐ शब्द बोलकर ही दी थी।
भगवान्का विवाह कच्छ और महाकच्छ नामक दोनों राजाओंकी दो अन्या यशस्वती और सुनंदासे किया गया।
(९) एक दिन महारानी यशस्थतीने रात्रीको इस भाति चार स्वप्न देखे -पहिले स्वप्नमें मेरुपर्वत द्वारा सारी ध्वी निगली