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प्रथम भाग।
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(११) महाराजा न.भिराय, कर्मभूमिकी प्रवृत्ति करनेवाले और धर्ममार्गको सबसे पहिले प्रकाशित करनेवाले भगवान् ऋषभके पिता थे।
(१२) भगवान ऋषमके उत्पन्न होनेके पंढरह महिने पहिले महाराजा नाभि और महारानी मरुदेवीके रहनेके लिये इद्रकी आजासे देवोंने एक बड़ा सुदर नगर बनाया था। यह नगर १२ ४९ (४८४३६ कोश लंबा चौड़ा) योजना बनाया गया था। इस नगरका नाम अयोध्या रखा । वर्तमानमें यह नगरी अषप्रान्तमें बहुत छोटो और उनाड़ रह गई है । रिस देशमें यह नगर था उसना नाम आगे जाते सुकोशल पड़ा इस लिये अयोध्या सुकोगला भी कहलाई थी। इस नगरी में जो लोग इधर उधरके भिन्न भिन्न प्रदेशों में रहा करते थे उन्हें लानर देवाने वसाया । महाराना नाभिरायके लिये इसमें एक राजपवन बनाया गया था। इस नगरमें शुभ मुहर्तसे राज्यप्रवेश किया गया था। भगवान् ऋषभ इनके यहां उत्पन्न होनेवाले थे अतएव महाराजा नाभिरावका अमिक इन्द्रों ने किया था।
(१३) भगवान् ऋपमके उत्पन्न होनेके पंढरह माम पूर्व नहाराना नाभिरायके आगनमें रत्नोंकी वर्षा इन्द्रोंने की। प्रतिदिन माई दश करोड़ रत्न प्रात माल, मध्यान्ह और शामको वर्षाये जाते थे।
(१४) भगवान् ऋषभदेवके गर्भ में आने पहिले मन्देवीने इस मांति लालदत्वप्न देखें (1) सफेद ऐगवत हाशमी (२)
तीर्थकरके बन्न नगरकी रचा इन्द्र करमावाद।
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