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१४ प्राचीन जैन इतिहास | उन्नति और अवनति पहिले हिस्से के प्रारंभ से ही होता है परन्तु प्रकृत इतिहासका प्रारंभ तीसरे हिस्सेके आखिरी भागसे ही होता
| क्योंकि इतने समय तक मनुष्य विना परिश्रमके कल्पवृक्षों द्वारा प्राप्त पदार्थोंका ही भोग करते रहते हैं । और कोई धर्म, कर्म भी नहीं रहते जिससे कि मनुष्योंकी जीवन- घटनाओं में परिवर्तन हो । अतः प्रकृत इतिहास तीसरे भागके पीछले हिस्से से ही प्रारंभ होता है । इसी अंतिम समय में कुलकरों की - मनुओंकी उत्पत्ति होती है । कुकरों की उत्पत्ति होनेके पहिले मनुष्योंका कोई नाम नहीं होता । स्त्रियाँ पुरुषोंको आर्य और पुरुष स्त्रियों को आयें कहा करते हैं । और इस समय में कोई वर्णभेद भी नहीं होता, सब एकसे होते हैं ।
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(६) चौथा हिस्सा व्यालीस हजार वर्षे कम एक हजार कोडाकोड़ी सागर समयका होता है । इसके प्रारंभ में मनुष्योंकी आयु ८४ लाख पूर्वकी होती है । और शरीरकी ऊंचाई २२०० हाथत्री होती है । अंतमें जाकर मनुष्य शरीर की ऊँचाई अधिकसे
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अधिक ७ हाथकी रह जाती है। यह समय कर्मभूमिका कहलाता है । क्योंकि इस समय के मनुष्योंको जीवन चलाने के लिये व्यव हारिक कार्य करने होते हैं। राज्य, व्यापार, धर्म, विवाह आदि कार्य इसी रिसेके प्रारंभ होने लगते हैं । इसी हिस्से में जीवन चलाने अन्याय साधनोकी उन्नतिका प्रारम्भ होता है । यह उन्नति - जीवन निर्वाहके जड़ सावनोंकी उन्नति - तो बराबर होती जाती है परंतु आत्मज्ञान, अध्यात्मविद्या, सरला आदि उच्च भाव कमी होती जाती है। इसी हिस्से में चौबीस महापुरुप उत्पन्न होते है जो अरने ज्ञानले सत् धर्मका प्रकाश करते हैं ।